सोमवार, 15 अगस्त 2011

अण्णा हजारे to डॉ. मनमोहनसिंगजीon लवासा परियोजनामे कानून-भंग,

ता. २७ जून २०११, सोमवार

सम्माननीय डॉ. मनमोहनसिंगजी
प्रधान मंत्री, भारत सरकार
साऊथ ब्लाक, नई दिल्ली


विषय : पुणे-स्थित लवासा परियोजनामे कानून-भंग, भ्रष्टाचार एवं आदिवासी, आम आदमी तथा किसानोंके दमन के प्रति राजनैतिक दबाव के कारण केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा नरमाई का रुख अपनाये जाने संबंधी..


सम्माननीय प्रधानमंत्रीजी,
सादर प्रणाम !

महाराष्ट्र के पुणे जिलेमे निर्माणाधीन लवासा परियोजनामें हुये सरासर कानून-भंग, भ्रष्टाचार एवं राजनैतिक दबाव के चलते स्थानीय किसान, आदिवासी, आम आदमी के दमन संबंधी मैने आपको २४ अगस्त २०१० के पत्र द्वारा पूरी तऱ्ह से अवगत किया था I इस पत्र के उपरांत एवं जन-आंदोलन के बढते दबाव के कारण केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय तथा राज्य सरकार के नगरविकास, राजस्व, जलसंपत्ती, वन आदि विभागोंद्वारा विभिन्न स्तरपर जांच-पडताल किये जाने पश्चात कई गंभीर मामले सामने आये है और यह कहना भी प्रस्तुत होगा की आंदोलनकारियों द्वारा लगाये गये लगभग सभी आरोप इस जांच के चलते सबूतोंके साथ स्थापित हुए है I अत: राजनैतिक दबाव के चलते इस जांच पडतालसे जो तथ्य सामने आये है उसपर कडी कार्रवाई करने के बजाय केंद्र एवं महाराष्ट्र की राज्य सरकार हेतुत: कार्रवाई टालनेके प्रयास मे लगी हुई नजर आ रही है जो बेहद गैर-लोकतांत्रिक और भ्रष्टाचार को बढावा देनेका प्रयास है I जन-लोकपाल बीलके आवश्यकता की पुष्टी करनेवाले भ्रष्टाचारके कई मामले देशमे इन दिनों उजागर हो रहे है, लवासा परियोजनामें जो कानून का मनचाहा इस्तेमाल, कानूनमें गैरजिम्मेदाराना बदलाव, भ्रष्टाचार, एवं राजनैतिक दबाव सामने आ रहा है, उसीका एक उदाहरण है I ऐसी स्थिती मे मै आपका ध्यान निम्न मुद्दोंपर आकर्षित करना चाहता हूँ -

१. महाराष्ट्र विधानसभा के नागपूर शीत-सत्रमें एक गंभीर मामलेका खुलासा हुआ था जिसमे यह पाया गया की लवासा जैसे एक निजी कंपनीके ‘होटल एकांत’में एक मीटिंग १४ जुलाई २००७ को हुई थी जिसमे महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री. विलासराव देशमुख, केंद्रीय कृषी मंत्री श्री. शरद पवार एवं महाराष्ट्रके तत्कालीन जलसंपत्ती मंत्री श्री अजित पवार सहित राज्यके कई वरिष्ठ अफसर शामिल हुये थे I यह पुरी तरहसे गैर-लोकतांत्रिक मामला है और यह स्पष्ट दिखता है की आम आदमीकी समस्याओंपर कभी-कभार ही ध्यान देनेवाले हमारे शीर्ष नेता पुंजीवादीओंका साथ देनेमे जरुरतसे ज्यादा तत्पर है I इस मीटिंगके पश्चात लवासा की सभी मांगे तुरंत पुरी की गई जिसमे लवासाको “विशेष योजना प्राधिकरण”का (Special Planning Authority) विशेष स्टेट्स देनेके साथ अन्य कई अहम् और असाधारण रियायतें दी गई तथा कानूनमें लवासा के लाभ हेतू महत्वपूर्ण बदलाव भी किये गये जो एक बेहद गंभीर मामला है I इस मामलेपर अबतक ना तो कोई पूछ्ताछ की गयी है न ही कोई कार्रवाई की गयी है I आपसे निवेदन है कि इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच के आदेश आप तुरंत दें I

२. केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा भेजी गयी एक्स्पर्ट कमिटीने यह माना है कि लवासाने भारत सरकारके तीनो ई.आय.ए. नोटीफिकेशन (१९९४, २००४ एवं २००६) के प्रवधानोंका भंग कर पर्यावरण (रक्षा) कानून १९८६ का उल्लंघन तो किया ही है, साथमे बिना किसी पर्यावरणीय अनुमती निर्माण कार्य जारी रखकर स्थानीय पर्यावरणकी अपरिवर्तनीय हानि भी की है I पर्यावरण मंत्रालयने इसके संबंधमें २५ नवम्बर २०११ को लवासाको अंतिम निर्देश भी दिये है I इन निर्देशो में यह कहा गया था कि दोषी पानेपर इस परियोजना में स्थित वह निर्माण जो बिना कानूनन अनुमती के हुए हो, उन्हे तोड दिया जायेगा I अब जब कि कानून का उल्लंघन हुआ है यह बात पर्यावरण मंत्रालय और लवासा दोनों ने मानी है तब पर्यावरण मंत्रालय स्वयं अपने कर्तव्य का निर्वहन टालते हुए अब लवासा को नियमित (Regularise) करनेकी कोशिशमें व्यस्त दिखाई दे रहा है I पर्यावरण मंत्रालय इस परियोजनाको कानूनके विपरीत क्यो मदद करना चाहता है? पर्यावरण मंत्रालयको इस गैरकानूनी परियोजनामे इतनी रुची क्यों है? जाहीर है की कोई जबरदस्त राजनैतिक दबाव इस परियोजनाके पक्ष में काम कर पर्यावरण मंत्रालयको कानूनन कार्रवाई करनेसे ना सिर्फ रोक रहा है बल्कि लवासा कंपनीको हर प्रकारकी कानूनन सहाय्यता करनेपर मजबूर भी कर रहा है I यह बात भी गौरतलब है की पर्यावरण मंत्रालय जहां एक तरफ आदर्श सोसायटीका अवैध निर्माण तोडना मुनासिब समझ रहा है वहीं उसी कानूनके उसी प्रावधान के तहत [पर्यावरण (रक्षा) कानून १९८६ की धारा ५] लवासाका निर्माण तोडना नही चाहता बल्की लवासाको पर्यावरण अनुमती देना चाहता है! यह कहां का न्याय है की एकही गुनाह के लिये एक अपराधी को सजा दी जाती है और उसी अपराध के लिये दुसरे अपराधी को पुरस्कार दिया जाता है? इस दोहरे मापदंड का लोकतंत्रमें क्या स्थान है? क्या इसे तानाशाही नहीं समझना चाहिये? मेरा आपसे आवेदन है कि आदर्श बिल्डिंग जैसे भ्रष्टाचारके जीते जागते निर्माणको नि:संशय गिरायाही जाना चाहिये, लवासा जैसे निर्माण जो सत्ता और संपत्तीके बलबूतेपर देशकी संसद द्वारा स्थापित कानूनकी धज्जीयाँ उडानेंपर तुले हो, उनको भी वही अनुशासन प्राप्त हो अन्यथा जिस संसदीय जनतंत्रपर हमे गौरवकी भावना होती है उसकी गरिमाको हम बरकरार नहीं रख पायेंगे I हमने जब भी लोकपाल कानून की बात की है तब-तब संसद की गरिमाको मुद्दा बनाते हुये हमें पूँछा गया की क्या आप संसद की अवमानना करना चाहते है? लवासाके संबंधमें यह बताया जा रहा है की पर्यावरण (रक्षा) कानून १९८६ के तहत जो कार्रवाई पर्यावरण मंत्रालयसे अपेक्षित है वह करनेके बजाय उल्टा पर्यावरण मंत्रालयके एक निदेशक द्वारा १६ नवम्बर २०१० को (कानून के विरोधाभासमें) जारी किये गये किसी गैरकानूनन ऑफिस मेमोरँडमके तहत लवासाको पर्यावरणीय अनुमती दी जायेगी! इससे अहम् सवाल उठते है की पर्यावरण (रक्षा) कानून १९८६ संवैधानिक रुपसे महत्वपूर्ण है या उससे ज्यादा महत्वपूर्ण एक ऑफिस मेमोरँडम है जो न कि संसदने बल्की एक निम्नस्तरके अधिकारीने पारित किया है? इस देश की संसद अहम् है या पर्यावरण मंत्रालयके निदेशक पदपर कार्यरत अफसर का एक गैरकानूनन आदेश? या फिर क्या हम यह मानके चलें की संसद की गरिमाको बरकरार रखना युपीए सरकारकी उतनी प्राथमिकता नही जितनी की राजनैतिक दबाव एवं धनशक्तीसे समृद्ध निजी कंपनियों के आर्थिक हितोंकी रक्षा करना? मेरा अपसे नम्र अनुरोध है की पर्यावरण मंत्रालयको आपका कार्यालय न्यायोचित कार्रवाई करनेका निर्देश दें ताकि लवासासे पिडीत आदिवासी, आम आदमी तथा किसानोंको न्याय मिले एवं केवल मुनाफा कमानेके उद्देशसे पर्यावरण का विनाश कर, देश के कानून के साथ खिलवाड करनेवाली निजी क्षेत्रकी कंपनीयोंको सबक मिले I

३. तमाम मीडीयाके जरिये यह बात सामने आ चुकी है की महाराष्ट्रके नगर विकास विभागने एक रिपोर्ट महाराष्ट्रके मुख्यमंत्री जी को सौपी है जिसमे लवासाको “विशेष योजना प्राधिकरण” (Special Planning Authority) नियुक्त कर महाराष्ट्र सरकारने जो गंभीर भूल की थी उसमे सुधार करते हुए लवासाके इस विशेषाधिकारको खत्म करने की सिफारिश की गयी है I इसपर महाराष्ट्र के सम्माननीय मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण जी ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है I यह बात भी यही साबित करती है की कोई बडा राजनैतिक दबाव लवासाके पक्षमें काम कर रहा है जिसके परिणामस्वरूप राज्य सरकार लवासाके खिलाफ कार्रवाई करना टाल रही है I अत: आपसे प्रार्थना है की राज्य सरकारको इस संबंधी उचित कार्रवाई तुरंत करनेके लिये निर्देशित करें I
४. इस परीयोजना में आदिवासी एवं सिलिंग कानून के तहत सरकारके पास बची हुई जमीनों के आबंटन संबंधी कई गैर-कानुनी मामले सामने आये है और महाराष्ट्र सरकारके राजस्व विभागने यह स्पष्ट रूप से कहा है कि लवासा के कब्जेवाली आदिवासी जमिनोंको आदिवासियों को वापस लौटाया जायेगा I इस संबंधमें जो कार्रवाई शुरू हुई है उसकी गतीको बढावा देनेकी जरुरत है ताकि आदिवासी और पिछ्डे जन-जातियों को सामाजिक न्याय मिल सके I आशा है आप स्वयं भी इससे पूरी तऱ्ह सहमत होंगे I

मुझे पुरी उम्मीद है की आप स्वयं इस विषयमे विशेष ध्यान देकर एवं आपका अमूल्य समय देकर शीर्ष स्तरपर इन सभी मामलों की जाँच करेंगे एवं इस परियोजना से प्रभावित आदिवासी, पिछ्डी जन-जाति के हमारे भाई, किसान और आम आदमीको उचित न्याय देंगे I

धन्यवाद!


भवदीय



कि.बा. तथा अण्णा हजारे

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