बुधवार, 21 दिसंबर 2011

भारत देश की मांओं और बहनों के नाम एक अपील

मेरी बहनों/मांओं ! क्या नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, शहीद भगत सिंह आदि किसी के भाई और बेटे नहीं थें ?
क्या भारत देश में देश पर कुर्बान होने वाले लड़के/लड़कियाँ मांओं ने पैदा करने बंद कर दिए हैं ? जो भविष्य में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और झाँसी की रानी आदि बन सकें. अगर पैदा किये है तब उन्हें कहाँ अपने आँचल की छाँव में छुपाए बैठी हो ? 
उन्हें निकालो ! अपने आँचल की छाँव से भारत देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करके देश को "सोने की चिड़िया" बनाकर "रामराज्य" लाने के लिए देश को आज उनकी जरूरत है.  मौत एक अटल सत्य है. इसका डर निकालकर भारत देश के प्रति अपना प्रेम और ईमानदारी दिखाए. क्या तुमने देश पर कुर्बान होने के लिए बेटे/बेटियां पैदा नहीं की. अपने स्वार्थ के लिए पैदा किये है. क्या तुमको मौत से डर लगता है कि कहीं मेरे बेटे/बेटी को कुछ हो गया तो मेरी कोख सूनी हो जायेगी और फिर मुझे रोटी कौन खिलाएगा. क्या नेताजी सुभाष चन्द्र बोस आदि की मांओं की कोख सूनी नहीं हुई, उन्हें आज तक कौन रोटी खिलता है ? क्या उनकी मांएं स्वार्थी थी ?
पूरा लेख यहाँ पर क्लिक करके पढ़ें : भारत देश की मांओं और बहनों के नाम एक अपील

गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

यह प्यार क्या है ?

ब भी प्यार की बात होती है सब लोग सिर्फ एक लड़की और एक लड़के में होने वाले आकर्षण को ही प्यार मान लेते हैं. परन्तु प्यार वो सुखद अनुभूति है जो किसी को देखे बिना भी हो जाती है. एक बाप प्यार करता है अपनी औलाद से, पति करता है पत्नी से, बहन करती है भाई से, यहाँ कौन ऐसा है जो किसी न किसी से प्यार न करता हो. चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न हो, प्यार को कुछ सीमित शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता.
प्यार फुलों से पूछो जो अपनी खुशबु को बिखेरकर कुछ पाने की चाह नही करता, प्यार क्या है यह धरती से पूछो जो हम सभी को पनाह और आसरा देती है. इसके बदले में कुछ नही लेती, प्यार क्या है आसमान से पूछो जो हमे अहसास दिलाता है कि -हमारे सिर पर किसी का आशीर्वाद भरा हाथ है. प्यार क्या है सूरज की गर्मी से पूछो. प्यार क्या है प्रकृति के हर कण से पूछो  जवाब मिल जायेगा. प्यार क्या है सिर्फ एक अहसास है जो सबके दिलों में धडकता है. प्यार एक ऐसा अहसास है जिसे शब्दों से बताया नहीं जा सकता, आज पूरी  दुनिया प्यार पर ही जिन्दा है, प्यार न हो तो ये जीवन कुछ भी नहीं है. प्यार को शब्दों मैं परिभाषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि अलग- 2 रिश्तों के हिसाब से  प्यार की अलग-2 परिभाषा होती है. प्यार की कोई एक परिभाषा देना बहुत मुश्किल है. यदि आपके पास कोई एक परिभाषा हो तो आप बताओ? पूरा लेख यहाँ पर क्लिक करके पढ़ें सच का सामना: यह प्यार क्या है ?:

शनिवार, 29 अक्टूबर 2011

रमेश कुमार सिरफिरा: "सच" का साथ मेरा कर्म व "इंसानियत" मेरा धर्म

रमेश कुमार सिरफिरा: "सच" का साथ मेरा कर्म व "इंसानियत" मेरा धर्म: प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया को आईना दिखाती एक पोस्ट मेरे दोस्तों/ शुभचिंतकों/आलोचकों - मुझे इस ब्लॉग "ब्लॉग की खबरें" के संच...

मंगलवार, 18 अक्टूबर 2011

नवभारत टाइम्स पर भी "सिरफिरा-आजाद पंछी"

नवभारत टाइम्स पर पत्रकार रमेश कुमार जैन का ब्लॉग क्लिक करके देखें "सिरफिरा-आजाद पंछी" (प्रचार सामग्री)
क्या पत्रकार केवल समाचार बेचने वाला है? नहीं.वह सिर भी बेचता है और संघर्ष भी करता है.उसके जिम्मे कर्त्तव्य लगाया गया है कि-वह अत्याचारी के अत्याचारों के विरुध्द आवाज उठाये.एक सच्चे और ईमानदार पत्रकार का कर्त्तव्य हैं,प्रजा के दुःख दूर करना,सरकार के अन्याय के विरुध्द आवाज उठाना,उसे सही परामर्श देना और वह न माने तो उसके विरुध्द संघर्ष करना. वह यह कर्त्तव्य नहीं निभाता है तो वह भी आम दुकानों की तरह एक दुकान है किसी ने सब्जी बेचली और किसी ने खबर.        
अगर आपके पास समय हो तो नवभारत टाइम्स पर निर्मित हमारे ब्लॉग पर अब तक प्रकाशित निम्नलिखित पोस्टों की लिंक को क्लिक करके पढ़ें. अगर टिप्पणी का समय न हो तो वहां पर वोट जरुर दें. हमसे क्लिक करके मिलिए : गूगल, ऑरकुट और फेसबुक पर 

अभी तो अजन्मा बच्चा हूँ दोस्तो
घरेलू हिंसा अधिनियम का अन्याय
घरेलू हिंसा अधिनियम का अन्याय-2
स्वयं गुड़ खाकर, गुड़ न खाने की शिक्षा नहीं देता हूं
अब आरोपित को ऍफ़ आई आर की प्रति मिलेगी
यह हमारे देश में कैसा कानून है?
नसीबों वाले हैं, जिनके है बेटियाँ
देशवासियों/पाठकों/ब्लॉगरों के नाम संदेश
आलोचना करने पर ईनाम?
जब पड़ जाए दिल का दौरा!
"शकुन्तला प्रेस" का व्यक्तिगत "पुस्तकालय" क्यों?
आओ दोस्तों हिन्दी-हिन्दी का खेल खेलें
हिंदी की टाइपिंग कैसे करें?
हिंदी में ईमेल कैसे भेजें
आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें
अपना ब्लॉग क्यों और कैसे बनाये
क्या मैंने कोई अपराध किया है?
इस समूह में आपका स्वागत है
एक हिंदी प्रेमी की नाराजगी
भगवान महावीर की शरण में हूँ
क्या यह निजी प्रचार का विज्ञापन है?
आप भी अपने मित्रों को बधाई भेजें
हमें अपना फर्ज निभाना है
क्या ब्लॉगर मेरी मदद कर सकते हैं ?
कटोरा और भीख
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी

क्लिक करें, ब्लॉग पढ़ें :-मेरा-नवभारत टाइम्स पर ब्लॉग,   "सिरफिरा-आजाद पंछी", "रमेश कुमार सिरफिरा", सच्चा दोस्त, आपकी शायरी, मुबारकबाद, आपको मुबारक हो, शकुन्तला प्रेस ऑफ इंडिया प्रकाशन, सच का सामना(आत्मकथा), तीर्थंकर महावीर स्वामी जी, शकुन्तला प्रेस का पुस्तकालय और (जिनपर कार्य चल रहा है) शकुन्तला महिला कल्याण कोष, मानव सेवा एकता मंच एवं  चुनाव चिन्ह पर आधरित कैमरा-तीसरी आँख

गुरुवार, 29 सितंबर 2011

क्या यह विज्ञापन है?

पूरा लेख यहाँ पर क्लिक करके पढ़ें क्या यह विज्ञापन है?

दोस्तों, आज आपको एक हिंदी ब्लॉगर की कथनी और करनी के बारें में बता रहा हूँ. यह श्रीमान जी हिंदी को बहुत महत्व देते हैं. इनके दो ब्लॉग आज ब्लॉग जगत में काफी अच्छी साख रखते हैं. अपनी पोस्टों में हिंदी का पक्ष लेते हुए भी नजर आते हैं. लेकिन मैंने पिछले दिनों हिंदी प्रेमियों की जानकारी के लिए इनके एक ब्लॉग पर निम्नलिखित टिप्पणी छोड़ दी. जिससे फेसबुक के कुछ सदस्य भी अपनी प्रोफाइल में हिंदी को महत्व दे सके, क्योंकि उपरोक्त ब्लॉगर भी फेसबुक के सदस्य है. मेरा ऐसा मानना है कि-कई बार हिंदी प्रेमियों का जानकारी के अभाव में या अन्य किसी प्रकार की समस्या के चलते मज़बूरी में हिंदी को इतना महत्व नहीं दें पाते हैं, क्योंकि मैं खुद भी काफी चीजों को जानकारी के अभाव में कई कार्य हिंदी में नहीं कर पाता था. लेकिन जैसे-जैसे जानकारी होती गई. तब हिंदी का प्रयोग करता गया और दूसरे लोगों भी जानकारी देता हूँ.जिससे वो भी जानकारी का फायदा उठाये. लेकिन कुछ व्यक्ति एक ऐसा "मुखौटा" पहनकर रखते हैं. जिनको पहचाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती हैं. आप आप स्वयं देखें कि-इन ऊँची साख रखने वाले ब्लॉगर के क्या विचार है उपरोक्त टिप्पणी पर. मैंने उनको जवाब भी दे दिया है. आप जवाब देकर मुझे मेरी गलतियों से भी अवगत करवाए. किसी ने कितना सही कहा कि-आज हिंदी की दुर्दशा खुद हिंदी के चाहने वालों के कारण ही है. मैं आपसे पूछता हूँ कि-क्या उपरोक्त टिप्पणी "विज्ञापन" के सभी मापदंड पूरे करती हैं. मुझे सिर्फ इतना पता है कि मेरे द्वारा दी गई उपरोक्त जानकारी से अनेकों फेसबुक के सदस्यों ने अपनी प्रोफाइल में अपना नाम हिंदी में लिख लिया है. अब इसको कोई "विज्ञापन' कहे या स्वयं का प्रचार कहे. बाकी आपकी टिप्पणियाँ मेरा मार्गदर्शन करेंगी.
नोट: मेरे विचार में एक "विज्ञापन" से विज्ञापनदाता को या किसी अन्य का हित होना चाहिए और जिस संदेश से सिर्फ देशहित होता हो. वो कभी विज्ञापन नहीं होता हैं. ..

शनिवार, 24 सितंबर 2011

अनपढ़ और गंवारों के समूह में शामिल होने का आमंत्रण पत्र

दोस्तों, क्या आप सोच सकते हैं कि "अनपढ़ और गँवार" लोगों का भी कोई ग्रुप इन्टरनेट की दुनिया पर भी हो सकता है? मैं आपका परिचय एक ऐसे ही ग्रुप से करवा रहा हूँ. जो हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु हिंदी प्रेमी ने बनाया है. जो अपना "नाम" करने पर विश्वास नहीं करता हैं बल्कि अच्छे "कर्म" करने के साथ ही देश प्रेम की भावना से प्रेरित होकर अपने आपको "अनपढ़ और गँवार" की संज्ञा से शोभित कर रहा है.अगर आपको विश्वास नहीं हो रहा, तब आप इस लिंक पर "हम है अनपढ़ और गँवार जी" जाकर देख लो. वैसे अब तक इस समूह में कई बुध्दिजिवों के साथ कई डॉक्टर और वकील शामिल होकर अपने आपको फक्र से अनपढ़ कहलवाने में गर्व महसूस कर रहे हैं. क्या आप भी उसमें शामिल होना चाहेंगे?  फ़िलहाल इसके सदस्य बहुत कम है, मगर बहुत जल्द ही इसमें लोग शामिल होंगे. कृपया शामिल होने से पहले नियम और शर्तों को अवश्य पढ़ लेना आपके लिए हितकारी होगा.एक बार जरुर देखें.
हिंदी मैं नाम लिखने की भीख मांगता एक पत्रकार- 
मुझ "अनपढ़ और गँवार" नाचीज़(तुच्छ) इंसान को ग्रुप/समूह के कितने सदस्य अपनी प्रोफाइल में अपना नाम पहले देवनागरी हिंदी में लिखने के बाद ही अंग्रेजी लिखकर हिंदी रूपी भीख मेरी कटोरे में डालना चाहते है.किसी भी सदस्य को अपनी प्रोफाइल में नाम हिंदी में करने में परेशानी हो रही हो तब मैं उसकी मदद करने के लिए तैयार हूँ. लेकिन मुझे प्रोफाइल में देवनागरी "हिंदी" में नाम लिखकर "हिंदी" रूपी एक भीख जरुर दें. आप एक नाम दोंगे खुदा दस हजार नाम देगा. आपके हर सन्देश पर मेरा "पंसद" का बटन क्लिक होगा. दे दो मुझे दाता के नाम पे, मुझे हिंदी में अपना नाम दो, दे दो अह्ल्ला के नाम पे, अपने बच्चों के नाम पे, अपने माता-पिता के नाम पे. दे दो, दे दो मुझे हिंदी में अपना नाम दो. पूरा लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.

सोमवार, 19 सितंबर 2011

THE MARK(ER) OF A SCAM-RS.200 cr. FRAUD BY MOP&NG

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THE MARK(ER) OF A SCAM-RS.200 cr. FRAUD BY MOP&NG
Tuesday, 13 September 2011 13:41
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"Series of truth based Articles by whistleblower & Activist Mr. Ravi Srivastava . Read , Share & Join him in his
fight."ETA

By Ravi Srivastava

" Government pretends to show that it is serious to curb the adulteration by coloring the PDS kerosene by blue
dye or conducting raids on Petro pumps but the fact is that the money from trade is siphoned to Ministry &Minister
for buying the positions of Chairman, directors and other plum positions .By a study of NCEAR it was established
that 38% of Kerosene is diverted and used for adulteration by Petrol/diesel pump owners with the support of
transporters and oil company officials."

Fuel Adulteration of (Petrol& Diesel) is the most lucrative business by oil mafia whereby crores of Rupees are
pocketed by unscrupulous Oil company officials, Ministry ,Transporters and Retailers this has been a menace for
MOP&NG since a very long time, precisely due to artificially keeping low price of Kerosene .Price of PDS kerosene
is revised nominally to keep the vote bank of BPL users intact by respective governments, such artificially low priced
kerosene has made adulteration of motor fuels like petrol/diesel an all profit no loss trade. Late Manjunath shanmugam
Sales officer of Indian oil was murdered while checking adulteration at a Petrol pump in U.P in Nov. 2006



Government pretends to show that it is serious to curb the adulteration by coloring the PDS kerosene by blue dye or
conducting raids on Petro pumps but the fact is that the money from trade is siphoned to Ministry &Minister for buying
the positions of Chairman, directors and other plum positions .By a study of NCEAR it was established that 38% of Kerosene
is diverted and used for adulteration by Petrol/diesel pump owners with the support of transporters and oil company officials.



After Manjunath’s murder MOP&NG formed a committee of Top oil company officials and sent them abroad to study and suggest a suitable Marker for checking adulteration such ‘markers’ are used in south Africa, Malaysia and many other countries to check adulteration due to differential pricing or subsidized fuel etc. Committee finally zeroed down on few suppliers of markers , out of which M/s Authentix was hand picked by ministry officials and then secretary Petroleum M.S Srinivasan in connivance with Petroleum Minister Murli Deora for supplying marker to oil marketing companies IOC/BPC/HPC , such decision was taken without even conducting a Pilot study,. Oil companies were advised to procure the marker from Indian agents of above supplier M/s SGS Ltd on a single offer basis. There was such a tearing hurry to implement marker system that no formulation, specification , chemical composition or Environment impact was studied /verified or compared. MOP&NG even amended the MDG( Marketing discipline guidelines) to empower the private company personnel to check /Inspect Retail outlets for the presence of marker (adulterated by marker doped kerosene), across the country.

Then secy. Petroleum ordered the oil companies in July 2006 to implement the Marker system expeditiously and oil companies placed purchase orders in Aug. 2006. The inauguration and Public demonstration of Marker system was carried out by Minister of Petroleum Sh. Murli Deora, Secy. Petroleum M.S. Srivnivasan , Dealers Association President shri, Ashok Badhwar, local MP Sh.. Sajjan kumar on 4.10.2006 at Indian oil’s Bijwasan Terminal, Initial order by oil companies was placed for 1 year till Sept 2007for approx. Rs. 100 crore .

Oil sector Officer’s Association convener Ashok Singh and coordinator R.P.Srivastava were approached by Marketing officers of oil companies and complained that Petrol pump owners were subjected to Extortion by the Private company SGS in the name of inspection /checking of Marker .OSOA mandated one leading Advocate of Mumbai to obtain all procurement details of Marker system in Nov. 2007 through RTI while the supply contract of Marker was extended for 6 months i.e up to March 2008, after initial denial even by MOP&NG , advocate received all the information in May 2008

Ashok singh & Srivastava made a formal complaint to Joint Director CBI, Mumbai in May 2008, in a quick retaliation Ashok Singh was promptly suspended within 4 days of filing the complaint by implicating him into a false charge, they both approached CVC(central vigilance commissioner) personally in June, July& Aug. 2008 , for whistle blowers protection, which was declined and all their correspondence was shared with HPCL Management who swiftly removed Srivastava’s all assistance, evicted from his office and made him sit under stairs case, his perquisites were stopped and even deducted salary. MOP&NG ordered oil companies to extend the contract of SGS till Dec. 2008 and total Marker worth Rs. 200 crore was purchased all on single offer.

PIL no. 60 on Marker scam was filed in Mumbai High Court in June 2008 by a social activist Sh. Simpreet singh , which was decided in Oct. 2008 , Hon’ble Mumbai High court ordered CBI to investigate whole Marker scam and ordered MOP&NG separately to conduct enquiry by Ministry’s Vigilance dept. Indian express report in Oct 2008 confirmed that the Marker was removable/launder able by ordinary clay.HPCL looking for some excuse to remove Srivastava he was suspended in Jan 2009 , again by falsely implicating him into OSOA’s strike from 7-9th Jan. 2009, HPCL had incidentally not even participated in that strike , and he himself was on duty during the strike days. In the meantime MOP&NG abruptly advised all oil companies to stop marker doping w.e.f Jan 2009 without assigning any reason.

Times of India report in June 2009 , confirmed that HPCL ‘s own R&D advisor had confirmed as early as in Jan. 2005 that the Marker is carcinogenic in nature (could cause cancer in human being). CBI filed a PE in Marker case in April 2009 against then Secy Petroleum , SGS, Authentix and unknown oil company officials .According to CNN-IBN News on 21st sept 2009 , CVC has also ordered CBI to conduct enquiry against Senior Petroleum ministry officials , News also confirmed that Authentix was already a black listed company abroad with the name “Biocode” Marker was purchased at the price of Rs. 13000 per ltr. and there was no basis for procuring marker at such an exorbitant price

Ashok Singh & Srivastava were removed from services of HPCL in March 2009. Srivastava was evicted from company accommodation in Aug 2009 after facing insult and humiliation by HPCL management for 15 months . This is all done by HPCL who claim themselves to be Model Employers being a Govt. of India undertaking ,pioneers in the field of HR for their HR practices like Emotional Intelligence/Performance Management , competence mapping etc. etc.

Despite High court/CVC orders no visible action has been taken by CBI? Though they have completed their enquiry and submitted report in Aug 2010 wherein advisory has been issued to Oil company chairmen and their complaint has been totally vindicated Public admission by CVC in the news item of Indian Express of 30th Dec. 2009 , that corruption has reached at the highest level in the Government and specially mentioned the Names of Ministry of Petroleum , power and others and how long people of this country will continue to pay artificially high price of fuel and subscribe to the govt. propaganda that OMC’s are losing so many crores every day and add to the prosperity of corrupt officials and adulterators? Both have filed writ Petition in Mumbai High court against their dismissal in April 2010 which has been admitted in Sept 2010, Deora has been removed as Petroleum Minister in Jan 2011 and from the cabinet in july 2011



Ravi Srivastava



Previous Article : PUBLIC FUNDING OF A PRIVATE AIRLINE , Tale of Two Whistleblower of HPCL


"Copyright of Article is prohibited without author permission."



About Author


Whistleblower , Activist & Indian Against Corruption active volunteer .

I R.P.SRIVASTAVA, 56 year old ,male Graduated in Science and Chemical Technology in the year 1975, after an stint of 1 year at Eicher Tractors and 6 years in Kansai Nerolac(erstwhile Goodlass Nerolac), I joined HPCL in 1982 as an Operations Officer in Grade ‘A’.

"I am a crusader against corruption , corruption which destroyed my life exposed Rs. 200 cr. corruption in Petroleum industry Marker system invited the wrath of Murli Deora his sychphant beaurocrats , chairman of the company who promptly dismissed me from service to appease their boss"

Please Read " Tale of Two Whistleblower of HPCL to know more.....

R. P. Srivastava
ravi4354@gmail.com
304, AUM SAI Sector-7
Kharghar, Navi Mumbai 410210
Mob- 09820183924 L/L 02227744012
India Against corruption Activist and Volunteer from Navi Mumbai
My Blog http://raviprakash4354.blogspot.com
Contact Me if you want to join me in the fight .Because people support can make huge difference .

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शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

Robert Vadra, partners with DLF Ltd,

NEW DELHI: New Delhi-based entrepreneur Robert Vadra, married into the country 's most powerful family, has made a quiet and relatively unheralded entry into the real estate business, including a partnership with DLF Ltd, India 's largest realty firm. Vadra, the son-in-law of the ruling United Progressive Alliance coalition chairperson Sonia Gandhi, has stayed away from electoral politics, maintaining that he wants to be known as a businessman.

In interviews, he has said that his focus is on Artex, a small company specialising in jewellery and handicraft exports. That seems to be changing as 42-year-old Vadra, known for his punishing fitness regime and love for fast bikes, has sought to scale up and diversify his business activities since 2008, acquiring tracts of land in Haryana and Rajasthan, a 50% stake in a leading business hotel in Delhi, and attempting an entry into the business of chartering aircraft. Regulatory filings available in the public domain and reviewed by ET reporters reveal the changing graph of Vadra 'sbusiness interests. These include wide-ranging transactions with the DLF Group.

Several of his companies have received loans, some unsecured, from DLF group companies, including the Bombay Stock Exchange-listed flagship DLF Ltd.

A JOINT VENTURE AND SOME LOANS

Sky Light Hospitality Pvt Ltd, a company wholly owned by Vadra and his mother Maureen Vadra, is a partner, along with DLF Hotel Holdings and others, in a partnership firm that owns the business hotel Hilton Garden Inn in the upscale South Delhi business district Saket. The hotel is located within the DLF Place mall, also known as DLF Courtyard. "The Hilton Garden Inn Hotel in Saket is a small business hotel.

I have interest in hospitality and am happy to be part of the hotel," Vadra told ET, speaking on the phone from Europe, where he is travelling presently. He said the business association with DLF stemmed from a long-standing friendship with the family that controls the realty giant. "I have known the DLF people for a long time and they are friends of mine. I had wanted to invest in real estate and one thing led to another. Right now, I can only be part of a small hotel.

Chidambaram and Robert Vadra TOO ??

Published: Tuesday, Mar 22, 2011, 0:13 IST
By Kumar Chellappan | Place: Chennai | Agency: DNA

The list of accused in the second generation mobile telephony spectrum scam is swelling by the day and may have two more high profile names.

Janata Party president and the brain behind the case, Subramanian Swamy on Tuesday said Union home minister P Chidambaram and son-in-law of Congress chief Sonia Gandhi, Robert Vadra, too are involved in the multi-crore scam.

Also, DMK chief and Tamil Nadu chief minister’s wife and daughter, who were recently quizzed, too, may be included as accused by the CBI, he told reporters in Chennai.

Meanwhile, the CBI has refused to comment on the allegations. “There is nothing we have to say at the moment,” a senior CBI official said.

Adopting a cautious approach, even BJP decided not to react. A senior BJP leader said the party will not react at this juncture. “It can be true. But we will have to verify the veracity of the allegations,” the leader said.

“Vadra has 20% stake in Unitech, one of the telecom operators which benefited through the allocation of second generation mobile telephony spectrum by former union minister A Raja. He is the beneficiary of illegal payments generated through the spectrum scam and Commonwealth Games contracts ,” Swamy said.

“The prime minister had asked Chidambaram, then the finance minister, to sit with Raja and decide the price at which the second generation mobile telephony spectrum could be sold. The duo decided to sell spectrum at 2001 prices, causing huge loss to the government. Moreover, Chidambaram did not inform the prime minister about the decision till 2008,” Swamy said.

He said Chidambaram was informed by the then home minister Sivaraj Patil that Etisalat and Telenor, two foreign telecom players, should not be allowed to operate in India. “Etisalat had links with the Pakistani spy agency ISI and Dawood Ibrahim while Telenor had Chinese links. Chidambaram did not tell Raja about this information. Later also when he took over as the home minister, he kept the information to himself,” Swamy said.

The Janata Party president said he would approach the prime minister seeking permission to include Chidambaram as an accused in the second generation mobile telephony spectrum case after the Tamil Nadu assembly election. “It will be better for Chidambaram to resign by that time,” he said.’

सोमवार, 12 सितंबर 2011

गूगल, ऑरकुट और फेसबुक के दोस्तों, पाठकों, लेखकों और टिप्पणिकर्त्ताओं के नाम एक बहुमूल्य संदेश

दोस्तों, मैं हिंदी में लिखी या की हुई टिप्पणी जल्दी से पढ़ लेता हूँ और समझ भी जाता हूँ. अगर वहां पर कुछ लिखने का मन करता है. तब टिप्पणी भी करता हूँ और कई टिप्पणियों का प्रति उत्तर भी देता हूँ या "पसंद" का बटन दबाकर अपनी सहमति दर्ज करता हूँ. अगर मुझे आपकी बात समझ में ही नहीं आएगी. तब मैं क्या आपकी विचारधारा पर टिप्पणी करूँगा या "पसंद" का बटन दबाऊंगा? कई बार आपके सुन्दर कथनों और आपकी बहुत सुन्दर विचारधारा को अंग्रेजी में लिखे होने के कारण पढने व समझने से वंचित रह जाता हूँ. इससे मुझे बहुत पीड़ा होती है, फिर मुझे बहुत अफ़सोस होता है.अत: आपसे निवेदन है कि-आप अपना कमेंट्स हिंदी में ही लिखने का प्रयास करें.
 आइये दोस्तों, इस बार के "हिंदी दिवस" पर हम सब संकल्प लें कि-आगे से हम बात हिंदी में लिखेंगे/बोलेंगे/समझायेंगे और सभी को बताएँगे कि हम अपनी राष्ट्र भाषा हिंदी (और क्षेत्रीय भाषाओँ) को एक दिन की भाषा नहीं मानते हैं. अब देखते हैं, यहाँ कितने व्यक्ति अपनी हिंदी में टिप्पणियाँ करते हैं? अगर आपको हिंदी लिखने में परेशानी होती हो तब आप यहाँ (http://www.google.co.in/transliterate) पर जाकर हिंदी में संदेश लिखें .फिर उसको वहाँ से कॉपी करें और यहाँ पर पेस्ट कर दें. आप ऊपर दिए लिंक पर जाकर रोमन लिपि में इंग्लिश लिखो और स्पेस दो.आपका वो शब्द हिंदी में बदल जाएगा.जैसे-dhanywad = धन्यवाद.
 
दोस्तों, आखिर हम कब तक सारे हिन्दुस्तानी एक दिन का "हिंदी दिवस" मानते रहेंगे? क्या हिंदी लिखने/बोलने/समझने वाले अनपढ़ होते हैं? क्या हिंदी लिखने से हमारी इज्जत कम होती हैं? अगर ऐसा है तब तो मैं अनपढ़, गंवार व अंगूठा छाप हूँ और मेरी पिछले 35 सालों में इतनी इज्जत कम हो चुकी है, क्योंकि इतने सालों तक मैंने सिर्फ हिंदी लिखने/ बोलने/ समझने के सिवाय कुछ किया ही नहीं है. अंग्रेजी में लिखी/कही बात मेरे लिए काला अक्षर भैंस के बराबर है.
आप सभी यहाँ पर पोस्ट और संदेश डालने वाले दोस्तों को एक विनम्र अनुरोध है.आप इसको स्वीकार करें या ना करें. यह सब आपके विवेक पर है और बाकी आपकी मर्जी. जो चाहे करें. आपका खुद का मंच या ब्लॉग है. ज्यादा से ज्यादा यह होगा. आप जो भी पोस्ट और संदेश अंग्रेजी में डालेंगे.उसको हम(अनपढ़,अंगूठा छाप) नहीं पढ़ पायेंगे. अगर आपका उद्देश्य भी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपना संदेश पहुँचाने का है और आपके लिखें को ज्यादा व्यक्ति पढ़ें. तब हमारे सुझाव पर जरुर ध्यान देंगे. आपकी अगर दोनों भाषाओँ पर अच्छी पकड़ है. तब उसको ध्दिभाषीय में डाल दिया करें. अगर संभव हो तो हिंदी में डाल दिया करें या फिर ध्दिभाषीय में डाल दिया करें.मेरा विचार हैं कि अगर आपकी बात को समझने में किसी को कठिनाई होती है. तब आपको हमेशा उस भाषा का प्रयोग करना चाहिए जो दूसरों को आसानी से समझ आ जाये. बुरा ना माने. बात को समझे. जैसे- मुझे अंग्रेजी में लिखी बात को समझने में परेशानी होती है.
हिंदी भाषा के साथ ही देश और जनहित में महत्वपूर्ण संदेश-समय की मांग, हिंदी में काम. हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है. हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें.हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है. यहाँ पर क्लिक करके देखें कैसे नेत्रदान करना है. नेत्रदान महादान आज ही करें. आपके द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है.
 अपने बारे में एक वेबसाइट को अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान भेजने के बाद यह कहना है कि-आप अपने पिछले जन्म में एक थिएटर कलाकार थे. आप कला के लिए जुनून अपने विचारों में स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. यह पता नहीं कितना सच है, मगर अंजाने में हुई किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ . हम बस यह कहते कि-आप आये हो, एक दिन लौटना भी होगा.फिर क्यों नहीं? तुम ऐसा करों तुम्हारे अच्छे कर्मों के कारण तुम्हें पूरी दुनियां हमेशा याद रखें.धन-दौलत कमाना कोई बड़ी बात नहीं, पुण्य/कर्म कमाना ही बड़ी बात है. पूरा लेख पढने के लिए यहाँ क्लिक करें

मंगलवार, 30 अगस्त 2011

What singapur did in 1982 on corruption

Dear All,

In 1982, In Singapore, LOKPAL BILL was implemented and 142 Corrupt Ministers & Officers were arrested in one single day.. Today Singapore has only 1% poor people & no taxes are paid by the people to the government, 92% Literacy Rate, Better Medical Facilities, Cheaper Prices, 90% Money is white & Only 1% Unemployment exists..


Re Post this if you want to live in a corruption free country..
-- Prof. Hardik Pathak
Associate Professor
Trainning & Placement Incharge (EE Dept.)
Department of Electrical Engineering
G H Patel college of Engg. & Tech.(GCET)
Vallabh Vidhyanagar, Gujarat, India
(M) : 9998040035
hardikpathak@yahoo.com
hardikpathak@gcet.ac.in

गुरुवार, 25 अगस्त 2011

सिरफिरा-आजाद पंछी: माफ़ी मांग लेने के बाद क्या मामला खत्म समझ लेना चा...

सिरफिरा-आजाद पंछी: माफ़ी मांग लेने के बाद क्या मामला खत्म समझ लेना चा...: श्री मनीष तिवारी के माफ़ी मांग लेने के बाद क्या यह मामला खत्म समझ लेना चाहिए? एक शर्त पर उसे रामलीला मैदान में जाकर श्री अन्ना हजारे जी के...

रविवार, 21 अगस्त 2011

LetterTO INDIRA GANDHI July 21, 1975 from Jayaprakash Narayan

Letters from Jail



TO INDIRA GANDHI

July 21, 1975
Chandigarh
Dear Prime Minister,
In a democracy the citizen has an inalienable right to civil disobedience when he finds that other channels of redress or reform have dried up. It goes without saying that the satyagrahi willingly invites and accepts his lawful punishment. This is the new dimension added to democracy by Gandhi. What an irony that it should be obliterated in Gandhi’s own India!

Moreover, it is a false choice that you have formulated. There is no choice between democracy and the nation. If was for the good of the nation that the people of India declared in their Constituent Assembly on 26th November 1949 that “We, the people of India, having solemnly resolved to constitute India into a Sovereign Democratic Republic…give to ourselves this Constitution.” That democratic Constitution cannot be changed into a totalitarian one by a mere ordinance or a low of Parliament. That can be done only by the people of India themselves in a new Constituent Assembly, especially elected for that specific purpose. If Justice, Liberty, Equality and Fraternity have not been rendered to ‘all its citizens’ even after a quarter of a century of signing of that Constitution, the fault is not that of the Constitution or of democracy but of the Congress party that has been in power in Delhi all these years. It is precisely because of that failure that there is so much unrest among the people and the youth. Repression is no remedy for that. On the other hand, it only compounds the failure.

You have accused the Opposition and me of every kind of villainy. But let me assure you that if you do the right things, for instance, your 20 points, tackling corruption at Ministerial levels, electoral reform, etc., take the Opposition into confidence, heed its advice, you will receive the willing cooperation, of every one of us. For that you need not destroy democracy. The ball is in your court. It is for you to decide.
- Jayaprakash Narayan

Source: From the book ‘J.P.’s Jail Life

सोमवार, 15 अगस्त 2011

अण्णा हजारे to डॉ. मनमोहनसिंगजीon लवासा परियोजनामे कानून-भंग,

ता. २७ जून २०११, सोमवार

सम्माननीय डॉ. मनमोहनसिंगजी
प्रधान मंत्री, भारत सरकार
साऊथ ब्लाक, नई दिल्ली


विषय : पुणे-स्थित लवासा परियोजनामे कानून-भंग, भ्रष्टाचार एवं आदिवासी, आम आदमी तथा किसानोंके दमन के प्रति राजनैतिक दबाव के कारण केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा नरमाई का रुख अपनाये जाने संबंधी..


सम्माननीय प्रधानमंत्रीजी,
सादर प्रणाम !

महाराष्ट्र के पुणे जिलेमे निर्माणाधीन लवासा परियोजनामें हुये सरासर कानून-भंग, भ्रष्टाचार एवं राजनैतिक दबाव के चलते स्थानीय किसान, आदिवासी, आम आदमी के दमन संबंधी मैने आपको २४ अगस्त २०१० के पत्र द्वारा पूरी तऱ्ह से अवगत किया था I इस पत्र के उपरांत एवं जन-आंदोलन के बढते दबाव के कारण केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय तथा राज्य सरकार के नगरविकास, राजस्व, जलसंपत्ती, वन आदि विभागोंद्वारा विभिन्न स्तरपर जांच-पडताल किये जाने पश्चात कई गंभीर मामले सामने आये है और यह कहना भी प्रस्तुत होगा की आंदोलनकारियों द्वारा लगाये गये लगभग सभी आरोप इस जांच के चलते सबूतोंके साथ स्थापित हुए है I अत: राजनैतिक दबाव के चलते इस जांच पडतालसे जो तथ्य सामने आये है उसपर कडी कार्रवाई करने के बजाय केंद्र एवं महाराष्ट्र की राज्य सरकार हेतुत: कार्रवाई टालनेके प्रयास मे लगी हुई नजर आ रही है जो बेहद गैर-लोकतांत्रिक और भ्रष्टाचार को बढावा देनेका प्रयास है I जन-लोकपाल बीलके आवश्यकता की पुष्टी करनेवाले भ्रष्टाचारके कई मामले देशमे इन दिनों उजागर हो रहे है, लवासा परियोजनामें जो कानून का मनचाहा इस्तेमाल, कानूनमें गैरजिम्मेदाराना बदलाव, भ्रष्टाचार, एवं राजनैतिक दबाव सामने आ रहा है, उसीका एक उदाहरण है I ऐसी स्थिती मे मै आपका ध्यान निम्न मुद्दोंपर आकर्षित करना चाहता हूँ -

१. महाराष्ट्र विधानसभा के नागपूर शीत-सत्रमें एक गंभीर मामलेका खुलासा हुआ था जिसमे यह पाया गया की लवासा जैसे एक निजी कंपनीके ‘होटल एकांत’में एक मीटिंग १४ जुलाई २००७ को हुई थी जिसमे महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री. विलासराव देशमुख, केंद्रीय कृषी मंत्री श्री. शरद पवार एवं महाराष्ट्रके तत्कालीन जलसंपत्ती मंत्री श्री अजित पवार सहित राज्यके कई वरिष्ठ अफसर शामिल हुये थे I यह पुरी तरहसे गैर-लोकतांत्रिक मामला है और यह स्पष्ट दिखता है की आम आदमीकी समस्याओंपर कभी-कभार ही ध्यान देनेवाले हमारे शीर्ष नेता पुंजीवादीओंका साथ देनेमे जरुरतसे ज्यादा तत्पर है I इस मीटिंगके पश्चात लवासा की सभी मांगे तुरंत पुरी की गई जिसमे लवासाको “विशेष योजना प्राधिकरण”का (Special Planning Authority) विशेष स्टेट्स देनेके साथ अन्य कई अहम् और असाधारण रियायतें दी गई तथा कानूनमें लवासा के लाभ हेतू महत्वपूर्ण बदलाव भी किये गये जो एक बेहद गंभीर मामला है I इस मामलेपर अबतक ना तो कोई पूछ्ताछ की गयी है न ही कोई कार्रवाई की गयी है I आपसे निवेदन है कि इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच के आदेश आप तुरंत दें I

२. केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा भेजी गयी एक्स्पर्ट कमिटीने यह माना है कि लवासाने भारत सरकारके तीनो ई.आय.ए. नोटीफिकेशन (१९९४, २००४ एवं २००६) के प्रवधानोंका भंग कर पर्यावरण (रक्षा) कानून १९८६ का उल्लंघन तो किया ही है, साथमे बिना किसी पर्यावरणीय अनुमती निर्माण कार्य जारी रखकर स्थानीय पर्यावरणकी अपरिवर्तनीय हानि भी की है I पर्यावरण मंत्रालयने इसके संबंधमें २५ नवम्बर २०११ को लवासाको अंतिम निर्देश भी दिये है I इन निर्देशो में यह कहा गया था कि दोषी पानेपर इस परियोजना में स्थित वह निर्माण जो बिना कानूनन अनुमती के हुए हो, उन्हे तोड दिया जायेगा I अब जब कि कानून का उल्लंघन हुआ है यह बात पर्यावरण मंत्रालय और लवासा दोनों ने मानी है तब पर्यावरण मंत्रालय स्वयं अपने कर्तव्य का निर्वहन टालते हुए अब लवासा को नियमित (Regularise) करनेकी कोशिशमें व्यस्त दिखाई दे रहा है I पर्यावरण मंत्रालय इस परियोजनाको कानूनके विपरीत क्यो मदद करना चाहता है? पर्यावरण मंत्रालयको इस गैरकानूनी परियोजनामे इतनी रुची क्यों है? जाहीर है की कोई जबरदस्त राजनैतिक दबाव इस परियोजनाके पक्ष में काम कर पर्यावरण मंत्रालयको कानूनन कार्रवाई करनेसे ना सिर्फ रोक रहा है बल्कि लवासा कंपनीको हर प्रकारकी कानूनन सहाय्यता करनेपर मजबूर भी कर रहा है I यह बात भी गौरतलब है की पर्यावरण मंत्रालय जहां एक तरफ आदर्श सोसायटीका अवैध निर्माण तोडना मुनासिब समझ रहा है वहीं उसी कानूनके उसी प्रावधान के तहत [पर्यावरण (रक्षा) कानून १९८६ की धारा ५] लवासाका निर्माण तोडना नही चाहता बल्की लवासाको पर्यावरण अनुमती देना चाहता है! यह कहां का न्याय है की एकही गुनाह के लिये एक अपराधी को सजा दी जाती है और उसी अपराध के लिये दुसरे अपराधी को पुरस्कार दिया जाता है? इस दोहरे मापदंड का लोकतंत्रमें क्या स्थान है? क्या इसे तानाशाही नहीं समझना चाहिये? मेरा आपसे आवेदन है कि आदर्श बिल्डिंग जैसे भ्रष्टाचारके जीते जागते निर्माणको नि:संशय गिरायाही जाना चाहिये, लवासा जैसे निर्माण जो सत्ता और संपत्तीके बलबूतेपर देशकी संसद द्वारा स्थापित कानूनकी धज्जीयाँ उडानेंपर तुले हो, उनको भी वही अनुशासन प्राप्त हो अन्यथा जिस संसदीय जनतंत्रपर हमे गौरवकी भावना होती है उसकी गरिमाको हम बरकरार नहीं रख पायेंगे I हमने जब भी लोकपाल कानून की बात की है तब-तब संसद की गरिमाको मुद्दा बनाते हुये हमें पूँछा गया की क्या आप संसद की अवमानना करना चाहते है? लवासाके संबंधमें यह बताया जा रहा है की पर्यावरण (रक्षा) कानून १९८६ के तहत जो कार्रवाई पर्यावरण मंत्रालयसे अपेक्षित है वह करनेके बजाय उल्टा पर्यावरण मंत्रालयके एक निदेशक द्वारा १६ नवम्बर २०१० को (कानून के विरोधाभासमें) जारी किये गये किसी गैरकानूनन ऑफिस मेमोरँडमके तहत लवासाको पर्यावरणीय अनुमती दी जायेगी! इससे अहम् सवाल उठते है की पर्यावरण (रक्षा) कानून १९८६ संवैधानिक रुपसे महत्वपूर्ण है या उससे ज्यादा महत्वपूर्ण एक ऑफिस मेमोरँडम है जो न कि संसदने बल्की एक निम्नस्तरके अधिकारीने पारित किया है? इस देश की संसद अहम् है या पर्यावरण मंत्रालयके निदेशक पदपर कार्यरत अफसर का एक गैरकानूनन आदेश? या फिर क्या हम यह मानके चलें की संसद की गरिमाको बरकरार रखना युपीए सरकारकी उतनी प्राथमिकता नही जितनी की राजनैतिक दबाव एवं धनशक्तीसे समृद्ध निजी कंपनियों के आर्थिक हितोंकी रक्षा करना? मेरा अपसे नम्र अनुरोध है की पर्यावरण मंत्रालयको आपका कार्यालय न्यायोचित कार्रवाई करनेका निर्देश दें ताकि लवासासे पिडीत आदिवासी, आम आदमी तथा किसानोंको न्याय मिले एवं केवल मुनाफा कमानेके उद्देशसे पर्यावरण का विनाश कर, देश के कानून के साथ खिलवाड करनेवाली निजी क्षेत्रकी कंपनीयोंको सबक मिले I

३. तमाम मीडीयाके जरिये यह बात सामने आ चुकी है की महाराष्ट्रके नगर विकास विभागने एक रिपोर्ट महाराष्ट्रके मुख्यमंत्री जी को सौपी है जिसमे लवासाको “विशेष योजना प्राधिकरण” (Special Planning Authority) नियुक्त कर महाराष्ट्र सरकारने जो गंभीर भूल की थी उसमे सुधार करते हुए लवासाके इस विशेषाधिकारको खत्म करने की सिफारिश की गयी है I इसपर महाराष्ट्र के सम्माननीय मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण जी ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है I यह बात भी यही साबित करती है की कोई बडा राजनैतिक दबाव लवासाके पक्षमें काम कर रहा है जिसके परिणामस्वरूप राज्य सरकार लवासाके खिलाफ कार्रवाई करना टाल रही है I अत: आपसे प्रार्थना है की राज्य सरकारको इस संबंधी उचित कार्रवाई तुरंत करनेके लिये निर्देशित करें I
४. इस परीयोजना में आदिवासी एवं सिलिंग कानून के तहत सरकारके पास बची हुई जमीनों के आबंटन संबंधी कई गैर-कानुनी मामले सामने आये है और महाराष्ट्र सरकारके राजस्व विभागने यह स्पष्ट रूप से कहा है कि लवासा के कब्जेवाली आदिवासी जमिनोंको आदिवासियों को वापस लौटाया जायेगा I इस संबंधमें जो कार्रवाई शुरू हुई है उसकी गतीको बढावा देनेकी जरुरत है ताकि आदिवासी और पिछ्डे जन-जातियों को सामाजिक न्याय मिल सके I आशा है आप स्वयं भी इससे पूरी तऱ्ह सहमत होंगे I

मुझे पुरी उम्मीद है की आप स्वयं इस विषयमे विशेष ध्यान देकर एवं आपका अमूल्य समय देकर शीर्ष स्तरपर इन सभी मामलों की जाँच करेंगे एवं इस परियोजना से प्रभावित आदिवासी, पिछ्डी जन-जाति के हमारे भाई, किसान और आम आदमीको उचित न्याय देंगे I

धन्यवाद!


भवदीय



कि.बा. तथा अण्णा हजारे

रविवार, 14 अगस्त 2011

आपको मुबारक हो: स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर जनहित में एक बहुमूल्य स...

आपको मुबारक हो: स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर जनहित में एक बहुमूल्य स...: " आप सभी देशवाशियों और आपके परिवार को 65वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. जनहित में एक बहुमूल्य संदेश:- आप सभी यहाँ पर पोस्ट डालने ..."

शनिवार, 13 अगस्त 2011

Article by Ram Jethmalani on P Chidambaram

Article by Ram Jethmalani
Palaniappan Chidambaram, whom I shall for the sake of brevity call just Chidambaram, is best seen through black and white. And please don't get me wrong and accuse me of racism. I refer not to epidermis or mane, but to the economic colour of money. Some of his greatest contributions to the economy of India are his brilliant pioneering initiatives for changing the colour of money from black to white. And this passion has never left him.Many of us have forgotten the Voluntary Disclosure of Income Scheme (VDIS) 1997, which he announced when he was Finance Minister with the United Front government, granting income-tax defaulters indefinite immunity from prosecution under the Foreign Exchange Regulation Act, 1973, Income Tax Act, 1961, Wealth Tax Act, 1957, and Companies Act, 1956, in exchange of self-valuation and disclosure of income and assets. The scheme was brilliantly conceived. While all schemes in the past valued declared assets at current prices, VDIS 1997 brought in an arbitrary date of 1 April 1987. Gold and silver hoarders, and large property holders got an exceptional bonanza on this valuation system. Further, proof of purchase was not insisted upon, which gave complete freedom to the confessors to fudge any date they wanted to their own financial advantage and further plunder of the country. So, even if gold was bought after 1987, it could be shown as having been bought before 1987, and it was a win-win game for all stakeholders to rake in the cuts. The Comptroller and Auditor General of India condemned the scheme in his report as abusive and a fraud on the genuine taxpayers of the country. But the issue was forgotten, and the illustrious career of Palaniappan Chidambaram rose to greater heights in the UPA regime.Those were his innocent days. What a long way he has come since the era when he was cooking up VDISs, so utterly transparent, that the loopholes and avenues to give relief to the looters stared you in the face. The world economy was also then a little simpler than it is today, and his best achievement was getting caught about his investments in Fairgrowth, which was involved in the Securities Scam of 1992. Chidambaram had to resign for this utterly transparent investment in a company whose scam would have paid rich dividends. Unfortunately, he was not Finance Minister at the time and did not have the machinery to hush things up, and could only remotely control the markets, unlike his present capabilities as former Finance Minister and thereafter.Being Finance Minister in the UPA government was his finest hour. He could fiddle around with share markets, capital markets, banks, financial instruments, such as, securities, participatory notes, tax treaties, not to speak of spectrum sale, and use his extraordinary innovative powers of black money magic to plunder our country with complete impunity. He assiduously cultivated the media with his clipped English accent (that led him down, now and then), occasional freebies, and sustained shadows of the Enforcement Directorate that he commanded.Chidambaram cannot get black money out of his blood. Dr Subramanian Swamy has clearly stated in his website, "I now have further information from my usually reliable sources in the Union Government that the tapping of Finance Minister Mr. Pranab Mukherjee and his close associate in the Ministry, enabled Mr. Robert Vadra the son-in-law of Ms. Sonia Gandhi and Mr. Karthik son of Mr. P. Chidambaram, to use the data thereby collected to manipulate and rig the Mumbai stock market. Earlier these data were directly provided by the then Finance Minister Mr. Chidambaram. I demand that the SEBI be asked by PM to initiate 'Insider Trading' investigation and prosecution of Mr. Vadra and Mr. Karthik."If what is put out by Dr Subramanian Swamy is false why doesn't Chidambaram sue him?The dark clouds of the 2G scam and the repeated evidence being given by A. Raja and other accused of his tacit involvement and other acts of omission and commission are menacingly closing in on Chidambaram. He is losing his cool, and more importantly, losing his carefully clipped English accent to its more indigenous roots more often. And like his colleague Digvijay Singh, his mind seems to be disintegrating to a stage where he has started talking gibberish. Take this, for example: in reply to the BJP demand for his resignation for his involvement in the 2G scam, Chidambaram claims that the BJP is targeting him since he initiated a probe by the NIA into Hindu terror. Can any rational person see the connection between the two?Take also his comments regarding the recent Mumbai blasts. As Home Minister, instead of taking stock of the situation, and providing leadership, the only intelligent thing he could think of saying was, "No intelligence is not intelligence failure." Even a college debating society expects better logic. It's something like saying "illness is not a failure of health" or "impotence is not a failure of potency".Chidambaram's special financial skills have diversified into electoral politics also. He has the distinction of having been declared defeated in the last Lok Sabha election, after which he galvanized his special skills and local machinery, in particular, a data entry operator, and doctored a marginal victory on the recount. That is quite a record for fraud. And can one forget how the Indian Bank was cleaned up and left with only non-performing assets thanks to him and his Tamil Maanila buddies?Chidambaram's record as Home Minister has been disastrous. Neither has he made any impact on internal security, with the worst massacres of his own paramilitary forces taking place in his time, nor on terrorism, which carries on in complete complacency because there are neither effective preventive or punitive systems in place, nor political will and national legislation to combat terrorism. It is on record and in the public domain that the Home Ministry gave incorrect names of India's most wanted list of terrorists allegedly hiding in Pakistan, some of whom were tracked living in India or in custody. Is this a testament to his fabled efficiency and commitment?What a laughing stock we must be before the world. It is almost as if India is determined that it shall not combat terrorism, shall not have enabling legislation as enacted by the US, such as the Homeland Security Act 2002, and the Prevention of Terrorism Act 2005 of UK and similar legislations in European governments.India is determined not to have an effective national agency on the lines of the Homeland Security Department of the US. The ramshackle National Investigation Agency showed itself as a complete failure during the recent Mumbai attacks. Understandable, because its only mandate appears to be to investigate "Hindu terror", the last refuge for failed and hopeless Congressmen like Chidambaram. The CCTNS, JIC, ARC, NTRO (presently in another scam), and NCTC remain effete, scattered and unmonitorable, even by the Home Ministry. With such an unequivocal determination by the UPA government not to address terrorism effectively, I can only grieve for my country.

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

तीर्थंकर महावीर स्वामी जी: कैसा हो रक्षा बंधन ?

तीर्थंकर महावीर स्वामी जी: कैसा हो रक्षा बंधन ?: "आज प्रकाशित सामग्री श्री संजय कुमार जैन जी द्वारा भेजी गई है. उन्होंने यह सामग्री उपरोक्त ब्लॉग के फेसबुक https://www.facebook.com/groups/m..."

सोमवार, 8 अगस्त 2011

सिरफिरा-आजाद पंछी: दोस्तों, क्या आपको "रसगुल्ले" खाने हैं

सिरफिरा-आजाद पंछी: दोस्तों, क्या आपको "रसगुल्ले" खाने हैं: "दो स्तों, हमारी गुस्ताखी माफ करना! वैसे गूगल के विद्वानों के अनुसार हमारी गलती माफ करने के काबिल नहीं हैं. फिर भी इस नाचीज़ का 'सिर-फिरा' हुआ..."

सिरफिरा-आजाद पंछी: Rafi - Ab Tumhare Hawale Watan Saathiyo - Haqeeqat...

सिरफिरा-आजाद पंछी: Rafi - Ab Tumhare Hawale Watan Saathiyo - Haqeeqat...

सिरफिरा-आजाद पंछी: भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की लड़ाई

सिरफिरा-आजाद पंछी: भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की लड़ाई: " भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे का एक सशक्त जन लोकपाल विधेयक बनाने के लिए जब 5 अप्रैल 2011 को जंतर-मंतर पर एक बिगुल बजाया..."

गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

chat from Vijay Patil

Report · 1:26am

i m nervous. u have even not answered my requests.


Report · 1:27am

sorry.

1 more day


Report · 1:29am

r u busy or not in a poeition to help me? i have alreadt resigned due to slavery treatment.

i m sorry but late night i m disturbing u.


Report · 1:32am

first a few basics I need to know.

If u have resigned what is ur earning and how will u survive?


Report · 1:33am

pl tell me.


Report · 1:34am

I mean what about ur BHAJI-Bhakri?

Are u allowed to look for new job?


Report · 1:34am

i m in search of new job in india and gulf also


Report · 1:35am

What is ur plan to come back to India?

Are u allowed to do other job in gulf as per their law?


Report · 1:36am

most probably i wl come to india on 2nd may, subject to the hearing with labor court here on sat 23ed apr.


Report · 1:36am

In what way and upto what time u want to fight with ur agent or recruiter?

good.

so u r fighting the case in the labour court ?

If u make a police complaint about ur agent in mumbai will there be danger to ur life in gulf?
[Vijay Patil]
Report · 1:37am
most probably i wl come to india on 2nd may, subject to the hearing with labor court here on sat 23ed apr.
[You]
Report · 1:37am
In what way and upto what time u want to fight with ur agent or recruiter?
good.
so u r fighting the case in the labour court ?
If u make a police complaint about ur agent in mumbai will there be danger to ur life in gulf?
[Vijay Patil]
Report · 1:40am
now t m winding up. the labor court promised me to give natural justice. and i have no option remains but to face the situation.
pl give me at least moral support and pray for me.
[You]
Report · 1:42am
of course. But do u want to lodge a police complaint?
[Vijay Patil]
Report · 1:43am
yes i wl do it at mumbai airport itself. but wat is yr suggestion?
[You]
Report · 1:46am
You write ur complaint giving details like date, place of meeting etc against the agent and send it now by post to Mr Arup Patnaik, Commissioner of Police Mumbai.
Then u can raise the issue with Indian media as well as Indian embassy in Riyadh.
[Vijay Patil]
Report · 1:51am
i have already urged to Hon president,ambassador at riyadh and cons. general at jeddah. jeddah office transferred my application to riyadh. but no progress. all agencies having their own interests. who wl take care of mine? and afterall who is vijay patil?
pl give me yr cell no. i wl cal u 2mro mrng.

मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

Corruption is like diabetes

Article for Blog Post Writing Competition 2011 | by Kush Kalra and Rubal Garg

April 17th, 2011 → 1:52 pm

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“Corruption is like diabetes can only be controlled but cannot totally be eliminated”

-Anonymous

The Problem of Definition

Everyone knows what corruption is; but it is difficult to define it in exact terms.

According to the Oxford English Dictionary,[1] the word ‘corrupt’ means “influenced by bribery, especially at the time of elections”. Encyclopedia Britanica[2]says a corrupt practice “includes bribery; but has reference to the electoral systems”. But these, as will be seen, are not definitions.

Corruption may be alternatively defined as unlawful practices. Thus, Section 161 of the Indian Penal Code[3] defines corruption as follows:

“Whoever, being or expecting to be a public servant, accepts or obtains, or agrees to accept, or attempts to obtain gratification whatever, other than legal remuneration as a motive or a reward for doing or forbearing to do any official act or for showing or forbearing to show, in exercise of his official functions, favour or disfavor to any person with the Central or State Government or Parliament or Legislature of any State or with any public servants as such…….”

Corruption as viewed in Criminal Law

Corruption has always been considered a serious type of anti-social act in criminal law. In India, the first codified criminal law i.e. the Indian Penal Code, 1860, contained a full chapter[4] which dealt with corruption. However, it confined its operation to those defined as public servants under Section 21 of the code. Mainly misconduct and abuse of power by public servants were covered under this chapter. Being governed by the traditional rules of criminal liability, the provisions in the I.P.C. could not successfully combat corruption by public servants who constituted a powerful class which had a considerable influence for titling the scales of justice. Moreover, the definition of the public servant suffered from many defects as many important functionaries engaged in discharging public duties were left out of the definition of public servant. However, the redeeming feature of the period till the start of the First world war was that the people in India, by and large were bound by moral values which abhorred corruption than by materialistic considerations of the industralised western world.

The scope of bribery and corruption by public servants had considerably increased due to war conditions. Even after the Second World War opportunities for corrupt practices remained for a considerable time. Extensive schemes for post war reconstruction opened wide new avenues for corruption among public servants. However, the existing provisions of the I.P.C were found to be insufficient for effective handling and controlling of corrupt public servants.[5] Therefore, to supplement and strengthen law against corruption, the Prevention of Corruption Act, 1947, entered the statute book. The Act being social legislation aimed at eradicating corruption, changed the traditional rules of criminal liability by presuming mens rea on the part of public servant if actus reus was proved.[6] Criminal misconduct in the discharge of official duty was made an offence Under Section 5 of the Act. However, it neither gave separate definition of public servant nor made improvements in Section 21 of the I.P.C through special amending clause. Generally, public servants were prosecuted under Section 161 of the I.P.C[7] read with Section 5 of the Act. In pursuance of the recommendations of the Santhanam Committee for taking stringent measures against rampant corruption the Act was amended in 1964.

Inspite of the amendment of the Act, the situation viciated by corrupt practices could not be redeemed. Rather corruption expanded its sphere of activity by engulfing the entire society. Even the elected representatives of the people who are supposed to be the repository of public faith by discharging their duties with honesty and integrity succumbed to the vagaries of corruption by sharing its booty with public servants. Efforts made for bringing political corruption within the purview of the Act did not succeed as elected representatives through whom most of the corruption is routed through were not considered as public servants.[8]

Ineffective Operation of Criminal Law against Corruption

Inspite of the laudable role of summit court, in upholding rule of law in the administration of criminal justice by giving free hand to the top investigation agencies[9] in corruption cases involving top politicians, bureaucrats and public men, the wheels of criminal justice have got struck up in the quagmire of legal niceties being preached by legal luminaries who happen to defend thieves of public trust of the people of the largest democracy of the world. The trail procedure is hampered as the proceedings are stayed on one pretext or the other. Sometimes, there is a backtracking taking the situation back to the square one. Non-conclusion of trail proceedings in all mega scams and bribery cases, mentioned in the preceding discussion, is ample proof of the tardy pace of our criminal justice system despite a constitutional mandate of speedy justice. The lurking fear of political uncertainty and clandestine operation of the powerful accused for winning over the witnesses and brow beating the prosecuting are some of the reasons which reader anti-corruption laws ineffective despite presumption of mens rea on the part of accused and changes in rules of criminal liability for curbing corruption.[10]

Even in ordinary cases of corruption, the Act has failed to achieve its objects. Despite the fact that investigation of corruption cases is conducted by a senior police officer not below the rank of Deputy Superintendent of Police [11] and the case are to be tried by a senior-judicial officer(special judge) of long experience not below the rank of additional Session Judge,[12] the operation of criminal justice system is dismal.

A perusal of the working of the anti-corruption laws in India and in the previous years leads to the conclusion that the anti-corruption Act, 1988 being considered as the strong arm of criminal law has been reduced to the status of ineffective legislation being fractured by the powerful mafia patronizing corruption through the influence it wields in every sphere of life because of its nexus with politicians, bureaucrats and publicmen of prominence. Various directions issued by the Supreme Court regarding successful working of the Act have been forgotten in oblivion.

Acknowledging the Difference: Is there a Solution?

Some recommendations are as under:

* Investigative agencies like the police and the Central Bureau of Investigation, whilst being operated under the auspices of the government, must be allowed to investigate freely and without any interference. Long-pending reforms for the police force must be implemented which will make appointments and therefore investigations transparent.
* As more Indian companies venture overseas, the government should consider implementing law similar to the Foreign Corrupt Practices Act, 1977 (“FCPA”) prevalent in the United States of America. Interestingly, FCPA has extra territorial effect, which provides an adequate deterrent.

Conclusion

The vice of corruption which is now a way of life and a potent threat to polity, has degenerated the Indian Society by rupturing its moral fabric. The cancer of corruption is an insidious host which is more dangerous than the army of the enemy at our frontiers. We can visualize the movements of the enemy and modulate our defence accordingly but we are helpless before the insidious host who is eroding the sound bases of our socio-economic legal set-up by clandestine dubious operations. When a country faces a particular danger from a particular problem, may it be terrorism or corruption, it has to be countered by stringent legal measures which have the support or approval of the society at large for those interest the emergency measures are pressed into service. Corruption which has been equated with the disease of cancer in India by the Honourable Supreme Court should be projected as the most serious problem of the modern India which deserves deterrent treatment at every stage of criminal justice system. General awareness regarding dangerous consequences of corruption has to be created. Awakening of masses through strong public opinion is the prime need of the time. A multipronged socio-legal approach against corruption can go a long way in analyzing and controlling corruption in its correct Indian perspective. If quick urgent steps are not taken at all levels for proper enforcement of anti-corruption laws in India, it may continue to dispense injustice as aptly pointed out by eminent jurist Nani palkiwala:

“Law is not only an ass but also a snail. The courts these days are not cathedrals of justice but cashinos. If you lose at one state, you double the stake and approach the higher stage.[13]

[1] The Concise Oxford Dictionary of Current English, Clarendon Press, Oxford, 1964.

[2] Encyclopedia Britanica, 1929 Edition, London, p.472.

[3] Op. cit., Report of the Committee on Prevention of Corruption, p.5

[4] Chapter IX dealing with offences by or Relating to Public Servants.

[5] Statement of objects and Reasons of Prevention of Corruption Act, 1947, Gazette of India dated November 23, 1946, Part V, p. 384.

[6] Section 4 of the Act.

[7] Deals with Talking illegal gratification by public servant as a motive or reward for showing official favour.

[8] I.P.C Amendment Bill 1972 contained in provisions for making M.P. and M.L.A as public servant but the same was deleted by the Joint Select Committee of the Parliament. Supreme Court in Nayak, R.S. v. Antulay, A.R., AIR 194 SC 684 has held that M..A is not a public servant.

[9] The Supreme Court has now given free hand to C.B.I. in corruption cases.

[10] E.g. Section 20 of the Prevention of Corruption Act, 1988.

[11] Section 17 of the Act.

[12] Sections 26 and 27 of the Act.

[13] Quoted in Judicial and Criminal Justice System Requires Overhauling by T.V. Rajeshwar.



Article by-

Kush Kalra and Rubal Garg

Students, Rajiv Gandhi National University of Law, Patiala

बुधवार, 13 अप्रैल 2011

एक अपील- क्रान्ति का बिगुल बजाये

जनकल्याण हेतु अपनी आहुति जरुर दें
हर वो भारतवासी जो भी भ्रष्टाचार से दुखी है,वो देश की आन-बान-शान के लिए अब भी समाजसेवी श्री अन्ना हजारे का समर्थन करने हेतु एक बार 022-61550789 पर स्वंय भी मिस्ड कॉल करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे.यह श्री हजारे की लड़ाई नहीं है बल्कि हर उस नागरिक की लड़ाई है. जिसने भारत माता की धरती पर जन्म लिया है.

आम और खास आदमी का वेबसाईट, 

जहाँ हर देशभक्त को एक बार जरूर जाना चाहिए !

 
भ्रष्टाचारियों के मुंह पर तमाचा, जन लोकपाल बिल पास हुआ हमारा. जन लोकपाल बिल को लेकर सरकार की नीयत ठीक नहीं लगती है.अब लगता है इन मंत्रियों को जूता-चप्पल की भाषा समझ आएगी. हमें अपने अधिकारों लेने के लिए अब ईंट का जवाब पत्थर से देना होगा.
              श्री अन्ना हजारे की जीत की लड़ाई को श्री जय कुमार झा के सहयोग से "सिरफिरा" भी हुआ अपने कैमरे में कैद करने में कामयाब. अपने चित्रों की जुबानी पोस्ट मैं यहाँ पर कल पोस्ट करूँगा.
                  
मेरी आकांक्षा (ख्याब) सुनकर भी अनेक लोग मजाक उड़ाते हैं, इसलिए मैं अपने आपको "सिरफिरा" कहलाता हूँ. जिसका दिमाग "फिरा" होता है या यह कहे "सनकी" होता है.उसी को लोग "पागल" कहते हैं, कोई मुझे "पागल" कहे उससे पहले ही स्वंय को "सिरफिरा" कहलवाना शुरू कर दिया. मेरे बारे में एक वेबसाइट को अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान भेजने के बाद यह कहना है कि- आप अपने पिछले जन्म में एक थिएटर कलाकार थे. आप कला के लिए जुनून अपने विचारों में स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं.भ्रष्टाचार से मुक्त भारत देश को बनाने के लिए हमें क्यों भाषा भी विदेशी का प्रयोग करना पड़ रहा है? राष्ट्र के प्रति हर व्यक्ति का पहला धर्म है अपने राष्ट्र की राष्ट्रभाषा का सम्मान करना.
                     इन्टरनेट या अन्य सोफ्टवेयर में हिंदी की टाइपिंग कैसे करें और हिंदी में ईमेल कैसे भेजें जाने और आम आदमियों की परेशानियों को लेकर क़ानूनी समाचारों पर बेबाक टिप्पणियाँ पढ़ें. उच्चतम व दिल्ली उच्च न्यायालय को भेजें बहुमूल्य सुझाव (जिस पर  कुछ समय बाद अमल किया गया) पर अपने विचार प्रकट करने हेतु मेरे ब्लॉग देखें.
             जब "कलम" पर अत्याचार होता है, तब "कलम" का पागलपन क्या होता है? आम-आदमी की छोटी-छोटी समस्याओं और क्षेत्रीय सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक कार्यक्रमों व अपराधिक गतिविधियों के समाचारों पर मेरी बेबाक टिप्पणियाँ और विचारधारा जाने हेतु नियमित रूप से मेरे ब्लॉग http://sirfiraa.blogspot.com   और http://rksirfiraa.blogspot.com देखें.

शनिवार, 9 अप्रैल 2011

इस देश की जनता के असली आजादी और भ्रष्ट मंत्रियों व उनके पार्टनर धनपशु उद्योगपतियों के बर्बादी का राजपत्र....

9 अप्रेल 2011 एक बार फिर इस देश के दूसरी आजादी के लड़ाई के जीत तथा इस देश की जनता के असली आजादी और भ्रष्ट मंत्रियों व उनके पार्टनर धनपशु उद्योगपतियों के बरबादी के शुरुआत का प्रतीक बन गया है |


आजादी की लड़ाई के बाद किसी भी आन्दोलन को इस तरह का जन समर्थन पहली बार मिला है ये लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है....इस आजादी के दूसरी लड़ाई के नायक बने अन्ना हजारे जी तथा अरविन्द केजरीवाल जी तथा इसके योद्धा बने मेरे जैसे लाखों लोग जिन्होंने अपना कीमती तन,मन व धन की आहुति देकर इस युद्ध को सफल बनाया ,बस अब जरूरत है इस लड़ाई के परिणामों के लिए सरकार में बैठे भ्रष्टाचारियों से लड़ते रहने की तथा इस लड़ाई के जज्बे को हर घर तक पहुँचाने की ...आप लोग भी देखिये इस लड़ाई को तस्वीरों की नजर से...
भ्रष्टाचारियों से भरी सरकार द्वारा जनता की ताकत से डरकर घुटने के बल चलकर जारी किया गया राज पत्र..

यहाँ आये हर बच्चे की पुकार थी जन लोकपाल

ये लोग कह रहे थे भ्रष्टाचारियों की तीन दबाई जूते ,चप्पल और पिटाई...

ये सब जेल भरो आन्दोलन का इंतजार कर रहे थे...

यहाँ लोग अपने आपको आजादी की दूसरी लड़ाई में रजिस्टर कर रहे थे..

इनका प्रिंटिंग का कारोबार है जिन्होंने फ्री में बेनर पोस्टर का आफर दिया लेकिन इनके सहयोग की  जरूरत नहीं परी क्योकि पहले से ही बरी मात्रा में छपवा लिया गया था..ऐसे लोगों की निःस्वार्थ सहयोग की वजह से ही ये लड़ाई सफल हुआ..






राष्ट्रिय भ्रष्टाचार उन्मूलन समिति के अध्यक्ष दुर्गेश सिंह शेंगर जैसे लोग अपने सभी कार्यकर्ताओं के साथ इस लड़ाई में दिन रात शामिल थे..

हर व्यक्ति अपने आपको इस आजादी की दूसरी लड़ाई में भागीदारी को अपने कैमरे में कैद कर यादगार बना लेना चाहता था...
मेरे मित्र अनुराग मुस्कान ने इस मुहीम को देश के लिये सबसे बरा जश्न कहा...उनके चेहरे पे पूरे देश की ख़ुशी थी..पत्रकारिता ने अपना धर्म इस मुहीम के लिये ईमानदारी से निभाया...

पूर्व आयकर आयुक्त विश्व बंधू गुप्ता जी से मैंने पूछा की मनमोहन सिंह जी इमानदार हैं क्या...तो उन्होंने गुस्से में लाल होते हुए बोला कौन कहता है की मनमोहन सिंह इमानदार है...इसे हमारे सामने खड़ा करो तब इसको बताऊंगा की कितना इमानदार है...गुप्ता जी जैसे जांबाज लोग इस लड़ाई के जोश को जंतर मंतर पर बढ़ा रहे थे...

अरविन्द केजरीवाल जी अपने सदाबहार मुस्कान से सबका स्वागत कर रहे थे...

ये लोग वो असली हीरो हैं जिन्होंने पूरी दिल्ली में इस मुहीम को शुरुआत से लेकर जंतर-मंतर तक पहुँचाया ..

8 अप्रेल की रात को जीत की ख़ुशी मानते लोग...

8 अप्रेल  2011 की रात शांति भूषन जी (पूर्व कानून मंत्री)सरकार द्वारा अन्ना जी के सभी मांग को मान लिये जाने के बाद लोगों को संबोधित करते हुए...

8 अप्रेल 2011 को जंतर-मंतर दिल्ली पर उमरा विशाल जन समूह ..

इसके अलावे मैं खुशदीप सहगल जी,पदम् सिंह जी तथा अजय कुमार झा जैसे ब्लोगरों का हार्दिक धन्यवाद करता हूँ की इन लोगों ने इस मुहीम को कामयाब बनाने में तथा लोगों को जंतर-मंतर तक आने के लिये प्रेरित करने में बहुत बड़ा योगदान दिया...