मंगलवार, 30 अगस्त 2011

What singapur did in 1982 on corruption

Dear All,

In 1982, In Singapore, LOKPAL BILL was implemented and 142 Corrupt Ministers & Officers were arrested in one single day.. Today Singapore has only 1% poor people & no taxes are paid by the people to the government, 92% Literacy Rate, Better Medical Facilities, Cheaper Prices, 90% Money is white & Only 1% Unemployment exists..


Re Post this if you want to live in a corruption free country..
-- Prof. Hardik Pathak
Associate Professor
Trainning & Placement Incharge (EE Dept.)
Department of Electrical Engineering
G H Patel college of Engg. & Tech.(GCET)
Vallabh Vidhyanagar, Gujarat, India
(M) : 9998040035
hardikpathak@yahoo.com
hardikpathak@gcet.ac.in

गुरुवार, 25 अगस्त 2011

सिरफिरा-आजाद पंछी: माफ़ी मांग लेने के बाद क्या मामला खत्म समझ लेना चा...

सिरफिरा-आजाद पंछी: माफ़ी मांग लेने के बाद क्या मामला खत्म समझ लेना चा...: श्री मनीष तिवारी के माफ़ी मांग लेने के बाद क्या यह मामला खत्म समझ लेना चाहिए? एक शर्त पर उसे रामलीला मैदान में जाकर श्री अन्ना हजारे जी के...

रविवार, 21 अगस्त 2011

LetterTO INDIRA GANDHI July 21, 1975 from Jayaprakash Narayan

Letters from Jail



TO INDIRA GANDHI

July 21, 1975
Chandigarh
Dear Prime Minister,
In a democracy the citizen has an inalienable right to civil disobedience when he finds that other channels of redress or reform have dried up. It goes without saying that the satyagrahi willingly invites and accepts his lawful punishment. This is the new dimension added to democracy by Gandhi. What an irony that it should be obliterated in Gandhi’s own India!

Moreover, it is a false choice that you have formulated. There is no choice between democracy and the nation. If was for the good of the nation that the people of India declared in their Constituent Assembly on 26th November 1949 that “We, the people of India, having solemnly resolved to constitute India into a Sovereign Democratic Republic…give to ourselves this Constitution.” That democratic Constitution cannot be changed into a totalitarian one by a mere ordinance or a low of Parliament. That can be done only by the people of India themselves in a new Constituent Assembly, especially elected for that specific purpose. If Justice, Liberty, Equality and Fraternity have not been rendered to ‘all its citizens’ even after a quarter of a century of signing of that Constitution, the fault is not that of the Constitution or of democracy but of the Congress party that has been in power in Delhi all these years. It is precisely because of that failure that there is so much unrest among the people and the youth. Repression is no remedy for that. On the other hand, it only compounds the failure.

You have accused the Opposition and me of every kind of villainy. But let me assure you that if you do the right things, for instance, your 20 points, tackling corruption at Ministerial levels, electoral reform, etc., take the Opposition into confidence, heed its advice, you will receive the willing cooperation, of every one of us. For that you need not destroy democracy. The ball is in your court. It is for you to decide.
- Jayaprakash Narayan

Source: From the book ‘J.P.’s Jail Life

सोमवार, 15 अगस्त 2011

अण्णा हजारे to डॉ. मनमोहनसिंगजीon लवासा परियोजनामे कानून-भंग,

ता. २७ जून २०११, सोमवार

सम्माननीय डॉ. मनमोहनसिंगजी
प्रधान मंत्री, भारत सरकार
साऊथ ब्लाक, नई दिल्ली


विषय : पुणे-स्थित लवासा परियोजनामे कानून-भंग, भ्रष्टाचार एवं आदिवासी, आम आदमी तथा किसानोंके दमन के प्रति राजनैतिक दबाव के कारण केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा नरमाई का रुख अपनाये जाने संबंधी..


सम्माननीय प्रधानमंत्रीजी,
सादर प्रणाम !

महाराष्ट्र के पुणे जिलेमे निर्माणाधीन लवासा परियोजनामें हुये सरासर कानून-भंग, भ्रष्टाचार एवं राजनैतिक दबाव के चलते स्थानीय किसान, आदिवासी, आम आदमी के दमन संबंधी मैने आपको २४ अगस्त २०१० के पत्र द्वारा पूरी तऱ्ह से अवगत किया था I इस पत्र के उपरांत एवं जन-आंदोलन के बढते दबाव के कारण केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय तथा राज्य सरकार के नगरविकास, राजस्व, जलसंपत्ती, वन आदि विभागोंद्वारा विभिन्न स्तरपर जांच-पडताल किये जाने पश्चात कई गंभीर मामले सामने आये है और यह कहना भी प्रस्तुत होगा की आंदोलनकारियों द्वारा लगाये गये लगभग सभी आरोप इस जांच के चलते सबूतोंके साथ स्थापित हुए है I अत: राजनैतिक दबाव के चलते इस जांच पडतालसे जो तथ्य सामने आये है उसपर कडी कार्रवाई करने के बजाय केंद्र एवं महाराष्ट्र की राज्य सरकार हेतुत: कार्रवाई टालनेके प्रयास मे लगी हुई नजर आ रही है जो बेहद गैर-लोकतांत्रिक और भ्रष्टाचार को बढावा देनेका प्रयास है I जन-लोकपाल बीलके आवश्यकता की पुष्टी करनेवाले भ्रष्टाचारके कई मामले देशमे इन दिनों उजागर हो रहे है, लवासा परियोजनामें जो कानून का मनचाहा इस्तेमाल, कानूनमें गैरजिम्मेदाराना बदलाव, भ्रष्टाचार, एवं राजनैतिक दबाव सामने आ रहा है, उसीका एक उदाहरण है I ऐसी स्थिती मे मै आपका ध्यान निम्न मुद्दोंपर आकर्षित करना चाहता हूँ -

१. महाराष्ट्र विधानसभा के नागपूर शीत-सत्रमें एक गंभीर मामलेका खुलासा हुआ था जिसमे यह पाया गया की लवासा जैसे एक निजी कंपनीके ‘होटल एकांत’में एक मीटिंग १४ जुलाई २००७ को हुई थी जिसमे महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री. विलासराव देशमुख, केंद्रीय कृषी मंत्री श्री. शरद पवार एवं महाराष्ट्रके तत्कालीन जलसंपत्ती मंत्री श्री अजित पवार सहित राज्यके कई वरिष्ठ अफसर शामिल हुये थे I यह पुरी तरहसे गैर-लोकतांत्रिक मामला है और यह स्पष्ट दिखता है की आम आदमीकी समस्याओंपर कभी-कभार ही ध्यान देनेवाले हमारे शीर्ष नेता पुंजीवादीओंका साथ देनेमे जरुरतसे ज्यादा तत्पर है I इस मीटिंगके पश्चात लवासा की सभी मांगे तुरंत पुरी की गई जिसमे लवासाको “विशेष योजना प्राधिकरण”का (Special Planning Authority) विशेष स्टेट्स देनेके साथ अन्य कई अहम् और असाधारण रियायतें दी गई तथा कानूनमें लवासा के लाभ हेतू महत्वपूर्ण बदलाव भी किये गये जो एक बेहद गंभीर मामला है I इस मामलेपर अबतक ना तो कोई पूछ्ताछ की गयी है न ही कोई कार्रवाई की गयी है I आपसे निवेदन है कि इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच के आदेश आप तुरंत दें I

२. केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा भेजी गयी एक्स्पर्ट कमिटीने यह माना है कि लवासाने भारत सरकारके तीनो ई.आय.ए. नोटीफिकेशन (१९९४, २००४ एवं २००६) के प्रवधानोंका भंग कर पर्यावरण (रक्षा) कानून १९८६ का उल्लंघन तो किया ही है, साथमे बिना किसी पर्यावरणीय अनुमती निर्माण कार्य जारी रखकर स्थानीय पर्यावरणकी अपरिवर्तनीय हानि भी की है I पर्यावरण मंत्रालयने इसके संबंधमें २५ नवम्बर २०११ को लवासाको अंतिम निर्देश भी दिये है I इन निर्देशो में यह कहा गया था कि दोषी पानेपर इस परियोजना में स्थित वह निर्माण जो बिना कानूनन अनुमती के हुए हो, उन्हे तोड दिया जायेगा I अब जब कि कानून का उल्लंघन हुआ है यह बात पर्यावरण मंत्रालय और लवासा दोनों ने मानी है तब पर्यावरण मंत्रालय स्वयं अपने कर्तव्य का निर्वहन टालते हुए अब लवासा को नियमित (Regularise) करनेकी कोशिशमें व्यस्त दिखाई दे रहा है I पर्यावरण मंत्रालय इस परियोजनाको कानूनके विपरीत क्यो मदद करना चाहता है? पर्यावरण मंत्रालयको इस गैरकानूनी परियोजनामे इतनी रुची क्यों है? जाहीर है की कोई जबरदस्त राजनैतिक दबाव इस परियोजनाके पक्ष में काम कर पर्यावरण मंत्रालयको कानूनन कार्रवाई करनेसे ना सिर्फ रोक रहा है बल्कि लवासा कंपनीको हर प्रकारकी कानूनन सहाय्यता करनेपर मजबूर भी कर रहा है I यह बात भी गौरतलब है की पर्यावरण मंत्रालय जहां एक तरफ आदर्श सोसायटीका अवैध निर्माण तोडना मुनासिब समझ रहा है वहीं उसी कानूनके उसी प्रावधान के तहत [पर्यावरण (रक्षा) कानून १९८६ की धारा ५] लवासाका निर्माण तोडना नही चाहता बल्की लवासाको पर्यावरण अनुमती देना चाहता है! यह कहां का न्याय है की एकही गुनाह के लिये एक अपराधी को सजा दी जाती है और उसी अपराध के लिये दुसरे अपराधी को पुरस्कार दिया जाता है? इस दोहरे मापदंड का लोकतंत्रमें क्या स्थान है? क्या इसे तानाशाही नहीं समझना चाहिये? मेरा आपसे आवेदन है कि आदर्श बिल्डिंग जैसे भ्रष्टाचारके जीते जागते निर्माणको नि:संशय गिरायाही जाना चाहिये, लवासा जैसे निर्माण जो सत्ता और संपत्तीके बलबूतेपर देशकी संसद द्वारा स्थापित कानूनकी धज्जीयाँ उडानेंपर तुले हो, उनको भी वही अनुशासन प्राप्त हो अन्यथा जिस संसदीय जनतंत्रपर हमे गौरवकी भावना होती है उसकी गरिमाको हम बरकरार नहीं रख पायेंगे I हमने जब भी लोकपाल कानून की बात की है तब-तब संसद की गरिमाको मुद्दा बनाते हुये हमें पूँछा गया की क्या आप संसद की अवमानना करना चाहते है? लवासाके संबंधमें यह बताया जा रहा है की पर्यावरण (रक्षा) कानून १९८६ के तहत जो कार्रवाई पर्यावरण मंत्रालयसे अपेक्षित है वह करनेके बजाय उल्टा पर्यावरण मंत्रालयके एक निदेशक द्वारा १६ नवम्बर २०१० को (कानून के विरोधाभासमें) जारी किये गये किसी गैरकानूनन ऑफिस मेमोरँडमके तहत लवासाको पर्यावरणीय अनुमती दी जायेगी! इससे अहम् सवाल उठते है की पर्यावरण (रक्षा) कानून १९८६ संवैधानिक रुपसे महत्वपूर्ण है या उससे ज्यादा महत्वपूर्ण एक ऑफिस मेमोरँडम है जो न कि संसदने बल्की एक निम्नस्तरके अधिकारीने पारित किया है? इस देश की संसद अहम् है या पर्यावरण मंत्रालयके निदेशक पदपर कार्यरत अफसर का एक गैरकानूनन आदेश? या फिर क्या हम यह मानके चलें की संसद की गरिमाको बरकरार रखना युपीए सरकारकी उतनी प्राथमिकता नही जितनी की राजनैतिक दबाव एवं धनशक्तीसे समृद्ध निजी कंपनियों के आर्थिक हितोंकी रक्षा करना? मेरा अपसे नम्र अनुरोध है की पर्यावरण मंत्रालयको आपका कार्यालय न्यायोचित कार्रवाई करनेका निर्देश दें ताकि लवासासे पिडीत आदिवासी, आम आदमी तथा किसानोंको न्याय मिले एवं केवल मुनाफा कमानेके उद्देशसे पर्यावरण का विनाश कर, देश के कानून के साथ खिलवाड करनेवाली निजी क्षेत्रकी कंपनीयोंको सबक मिले I

३. तमाम मीडीयाके जरिये यह बात सामने आ चुकी है की महाराष्ट्रके नगर विकास विभागने एक रिपोर्ट महाराष्ट्रके मुख्यमंत्री जी को सौपी है जिसमे लवासाको “विशेष योजना प्राधिकरण” (Special Planning Authority) नियुक्त कर महाराष्ट्र सरकारने जो गंभीर भूल की थी उसमे सुधार करते हुए लवासाके इस विशेषाधिकारको खत्म करने की सिफारिश की गयी है I इसपर महाराष्ट्र के सम्माननीय मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण जी ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है I यह बात भी यही साबित करती है की कोई बडा राजनैतिक दबाव लवासाके पक्षमें काम कर रहा है जिसके परिणामस्वरूप राज्य सरकार लवासाके खिलाफ कार्रवाई करना टाल रही है I अत: आपसे प्रार्थना है की राज्य सरकारको इस संबंधी उचित कार्रवाई तुरंत करनेके लिये निर्देशित करें I
४. इस परीयोजना में आदिवासी एवं सिलिंग कानून के तहत सरकारके पास बची हुई जमीनों के आबंटन संबंधी कई गैर-कानुनी मामले सामने आये है और महाराष्ट्र सरकारके राजस्व विभागने यह स्पष्ट रूप से कहा है कि लवासा के कब्जेवाली आदिवासी जमिनोंको आदिवासियों को वापस लौटाया जायेगा I इस संबंधमें जो कार्रवाई शुरू हुई है उसकी गतीको बढावा देनेकी जरुरत है ताकि आदिवासी और पिछ्डे जन-जातियों को सामाजिक न्याय मिल सके I आशा है आप स्वयं भी इससे पूरी तऱ्ह सहमत होंगे I

मुझे पुरी उम्मीद है की आप स्वयं इस विषयमे विशेष ध्यान देकर एवं आपका अमूल्य समय देकर शीर्ष स्तरपर इन सभी मामलों की जाँच करेंगे एवं इस परियोजना से प्रभावित आदिवासी, पिछ्डी जन-जाति के हमारे भाई, किसान और आम आदमीको उचित न्याय देंगे I

धन्यवाद!


भवदीय



कि.बा. तथा अण्णा हजारे

रविवार, 14 अगस्त 2011

आपको मुबारक हो: स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर जनहित में एक बहुमूल्य स...

आपको मुबारक हो: स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर जनहित में एक बहुमूल्य स...: " आप सभी देशवाशियों और आपके परिवार को 65वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. जनहित में एक बहुमूल्य संदेश:- आप सभी यहाँ पर पोस्ट डालने ..."

शनिवार, 13 अगस्त 2011

Article by Ram Jethmalani on P Chidambaram

Article by Ram Jethmalani
Palaniappan Chidambaram, whom I shall for the sake of brevity call just Chidambaram, is best seen through black and white. And please don't get me wrong and accuse me of racism. I refer not to epidermis or mane, but to the economic colour of money. Some of his greatest contributions to the economy of India are his brilliant pioneering initiatives for changing the colour of money from black to white. And this passion has never left him.Many of us have forgotten the Voluntary Disclosure of Income Scheme (VDIS) 1997, which he announced when he was Finance Minister with the United Front government, granting income-tax defaulters indefinite immunity from prosecution under the Foreign Exchange Regulation Act, 1973, Income Tax Act, 1961, Wealth Tax Act, 1957, and Companies Act, 1956, in exchange of self-valuation and disclosure of income and assets. The scheme was brilliantly conceived. While all schemes in the past valued declared assets at current prices, VDIS 1997 brought in an arbitrary date of 1 April 1987. Gold and silver hoarders, and large property holders got an exceptional bonanza on this valuation system. Further, proof of purchase was not insisted upon, which gave complete freedom to the confessors to fudge any date they wanted to their own financial advantage and further plunder of the country. So, even if gold was bought after 1987, it could be shown as having been bought before 1987, and it was a win-win game for all stakeholders to rake in the cuts. The Comptroller and Auditor General of India condemned the scheme in his report as abusive and a fraud on the genuine taxpayers of the country. But the issue was forgotten, and the illustrious career of Palaniappan Chidambaram rose to greater heights in the UPA regime.Those were his innocent days. What a long way he has come since the era when he was cooking up VDISs, so utterly transparent, that the loopholes and avenues to give relief to the looters stared you in the face. The world economy was also then a little simpler than it is today, and his best achievement was getting caught about his investments in Fairgrowth, which was involved in the Securities Scam of 1992. Chidambaram had to resign for this utterly transparent investment in a company whose scam would have paid rich dividends. Unfortunately, he was not Finance Minister at the time and did not have the machinery to hush things up, and could only remotely control the markets, unlike his present capabilities as former Finance Minister and thereafter.Being Finance Minister in the UPA government was his finest hour. He could fiddle around with share markets, capital markets, banks, financial instruments, such as, securities, participatory notes, tax treaties, not to speak of spectrum sale, and use his extraordinary innovative powers of black money magic to plunder our country with complete impunity. He assiduously cultivated the media with his clipped English accent (that led him down, now and then), occasional freebies, and sustained shadows of the Enforcement Directorate that he commanded.Chidambaram cannot get black money out of his blood. Dr Subramanian Swamy has clearly stated in his website, "I now have further information from my usually reliable sources in the Union Government that the tapping of Finance Minister Mr. Pranab Mukherjee and his close associate in the Ministry, enabled Mr. Robert Vadra the son-in-law of Ms. Sonia Gandhi and Mr. Karthik son of Mr. P. Chidambaram, to use the data thereby collected to manipulate and rig the Mumbai stock market. Earlier these data were directly provided by the then Finance Minister Mr. Chidambaram. I demand that the SEBI be asked by PM to initiate 'Insider Trading' investigation and prosecution of Mr. Vadra and Mr. Karthik."If what is put out by Dr Subramanian Swamy is false why doesn't Chidambaram sue him?The dark clouds of the 2G scam and the repeated evidence being given by A. Raja and other accused of his tacit involvement and other acts of omission and commission are menacingly closing in on Chidambaram. He is losing his cool, and more importantly, losing his carefully clipped English accent to its more indigenous roots more often. And like his colleague Digvijay Singh, his mind seems to be disintegrating to a stage where he has started talking gibberish. Take this, for example: in reply to the BJP demand for his resignation for his involvement in the 2G scam, Chidambaram claims that the BJP is targeting him since he initiated a probe by the NIA into Hindu terror. Can any rational person see the connection between the two?Take also his comments regarding the recent Mumbai blasts. As Home Minister, instead of taking stock of the situation, and providing leadership, the only intelligent thing he could think of saying was, "No intelligence is not intelligence failure." Even a college debating society expects better logic. It's something like saying "illness is not a failure of health" or "impotence is not a failure of potency".Chidambaram's special financial skills have diversified into electoral politics also. He has the distinction of having been declared defeated in the last Lok Sabha election, after which he galvanized his special skills and local machinery, in particular, a data entry operator, and doctored a marginal victory on the recount. That is quite a record for fraud. And can one forget how the Indian Bank was cleaned up and left with only non-performing assets thanks to him and his Tamil Maanila buddies?Chidambaram's record as Home Minister has been disastrous. Neither has he made any impact on internal security, with the worst massacres of his own paramilitary forces taking place in his time, nor on terrorism, which carries on in complete complacency because there are neither effective preventive or punitive systems in place, nor political will and national legislation to combat terrorism. It is on record and in the public domain that the Home Ministry gave incorrect names of India's most wanted list of terrorists allegedly hiding in Pakistan, some of whom were tracked living in India or in custody. Is this a testament to his fabled efficiency and commitment?What a laughing stock we must be before the world. It is almost as if India is determined that it shall not combat terrorism, shall not have enabling legislation as enacted by the US, such as the Homeland Security Act 2002, and the Prevention of Terrorism Act 2005 of UK and similar legislations in European governments.India is determined not to have an effective national agency on the lines of the Homeland Security Department of the US. The ramshackle National Investigation Agency showed itself as a complete failure during the recent Mumbai attacks. Understandable, because its only mandate appears to be to investigate "Hindu terror", the last refuge for failed and hopeless Congressmen like Chidambaram. The CCTNS, JIC, ARC, NTRO (presently in another scam), and NCTC remain effete, scattered and unmonitorable, even by the Home Ministry. With such an unequivocal determination by the UPA government not to address terrorism effectively, I can only grieve for my country.

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

तीर्थंकर महावीर स्वामी जी: कैसा हो रक्षा बंधन ?

तीर्थंकर महावीर स्वामी जी: कैसा हो रक्षा बंधन ?: "आज प्रकाशित सामग्री श्री संजय कुमार जैन जी द्वारा भेजी गई है. उन्होंने यह सामग्री उपरोक्त ब्लॉग के फेसबुक https://www.facebook.com/groups/m..."

सोमवार, 8 अगस्त 2011

सिरफिरा-आजाद पंछी: दोस्तों, क्या आपको "रसगुल्ले" खाने हैं

सिरफिरा-आजाद पंछी: दोस्तों, क्या आपको "रसगुल्ले" खाने हैं: "दो स्तों, हमारी गुस्ताखी माफ करना! वैसे गूगल के विद्वानों के अनुसार हमारी गलती माफ करने के काबिल नहीं हैं. फिर भी इस नाचीज़ का 'सिर-फिरा' हुआ..."

सिरफिरा-आजाद पंछी: Rafi - Ab Tumhare Hawale Watan Saathiyo - Haqeeqat...

सिरफिरा-आजाद पंछी: Rafi - Ab Tumhare Hawale Watan Saathiyo - Haqeeqat...

सिरफिरा-आजाद पंछी: भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की लड़ाई

सिरफिरा-आजाद पंछी: भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की लड़ाई: " भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे का एक सशक्त जन लोकपाल विधेयक बनाने के लिए जब 5 अप्रैल 2011 को जंतर-मंतर पर एक बिगुल बजाया..."